पंचसंग्रह वन्धनकरण प्ररूपणा अधिकार | Panch Sangrah Vandhanakaran Prarupana Adhikar

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Panch Sangrah Vandhanakaran Prarupana Adhikar  by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) २ बौद्धदर्शान ने ईश्वरकर्ते त्व का निपेध किया है और कर्म एव उसका विपाक भी माना है । लेकिन बुद्ध ने क्षणिकवाद का प्रतिपादन किया | अर्थात्‌ आत्मा आदि प्रत्येक पदार्थ क्षणिक है | इस प्रतिपादन का निराकरण करने के लिये भगवान महावीर ने स्पष्ट किया कि यदि आत्मा को क्षणिक मान लिया जाये तो कमंविपाक की किसी तरह उपपत्ति वही हो सकती है । स्वकृत कमं का भोग ओर परकृत कर्म के भोग का अभाव तभी घटित होता है जबकि आत्मा कोन तो एकान्त नित्य माना जये मौर न एकान्त क्षणिक । ३ भौतिकवाद का प्रचार प्रत्येक युग मे रहा है। भौतिकवादी कृतकर्म भोगी पुनर्जन्मवान किसी स्थायी तत्व को नही मानते हैं। भौतिक तत्वों के सयोग से चेतन की उत्पत्ति होतो है । यह हृष्टि बहुत ही सकुचित थी, जिसका कर्म सिद्धान्त के द्वारा निराकरण किया गया। जेनदर्शन की कर्म-विवेचना का साराश यद्यपि कुछ वैदिक दर्शनो और बौद्धदर्शन से भी कर्म की विचारणा है। परन्तु उनके द्वारा ससारी आत्मा की अनुभवसिद्ध भिन्न भिन्न अवस्थाओ का जैसा स्पष्टीकरण होना चाहिये वैसा कुछ भी नही किया गया है । पातजल दर्शन मे कर्म के जाति, आयु और भोग ये तीन तरह के विपाक बताये हैँ किन्तु वह्‌ वर्णेन जेनदशन के क्मविचार के सामने नाममात्र का है । जनदरशन ने कमं विचार का वर्णन अथ से इत्ति तकं कियाहै। सक्ष प मे जिसका रूपक इस प्रकार है- कमं अचेतन पौदूगलिक है गौर आत्मा चेतन, परन्तु आत्मा के साथ कर्म का बध कैसे होता है ? किन-किन कारणो से होता है ? किस कारण से कम मे कैसी शक्ति पैदा होती है? कर्म अधिक से अधिक और कम से कस कितने समय तक आत्मा के साथ सबद्ध रहता है ? आत्मा के साथ सबद्ध कर्म कितने समय तक विपाक देने मे अस-




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