कोश - कला | Kosh Kala

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Kosh Kala by बाबू रामचंद्र वर्मा - Babu Ram Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ् कोश-का या पढ़ा है; पर बह अन्थ हाथ में आ जाने पर भी आप वह विषय जल्‍दी ढूंढ नहीं सकते ! अथवा आप कोई शब्द तो जानते हैं, पर उसका अर्थ, पर्याय आदि विवश्ण आप झूछ गये हैं | अथवा यह भी हो सकता है कि कोई ग्रन्थ पढ़ते समय आपके सामने कोई नया विषय या उससे सम्बन्ध रखनेवाद्ा कोई गब्द आता दै, पर उसका आशय आपको समझ में नहीं आता ! ऐसी परिस्थितियों में कोई विषय या शब्द ढूँढ्‌ निकालने का क्या उपाय है ? ऐसी बातें एक जगह इकट्टी हो जाने पर भी उददिष्ठ विषय या झब्द तक पहुँचने का कोई सुगम मार्ग या सुबोध साधन होना चाहिए । बड़े-बड़े विद्वानों ने ओर विशेषतः पाइचात्य विद्वानों ने इसके छिए विषय-विभागवाला सार्ग छोड़कर अक्षर-क्रम से युक्त शब्द-क्रमचाला मागे निकाछा, जो साधारण छोगों के छिए बहुत सुगम भी दो गया और जिससे समय की भी बहुत बचत होने ठगी । अब सभी देशों में सभी प्रकार के छोटे-बड़े शब्द-कोश तो अक्षर क्रम और शब्द-ऋम से बनते ही हैं; अच्छे, बड़े और महत्त्वपूर्ण घ्न्थों के साथ प्रायः परिशिष्ट के रूप में अनेक प्रकार की अनुक्रमणिकाएँ भी लगती हैं; जेसे--प्रतीकाघुक्रमणिका; विषयानुक्रमणिका, झब्दाचुक्रमणिका आदि । ऐसी अलुक्रमणि- काओं में, प्रतीक, विशिष्ट शब्द आदि अक्षर-क्रम से दिये रहते हैं, और उनके सामने यह निर्देश भी होता है कि इसका उर्ठेख या विवरण असुक प्रण अथवा अमुक अमुक पएृछों में मिलेगा ! इस प्रकार व्यापक दृष्टि से विचार करने पर कोश का क्षेत्र बहुत ही विशाठ और विस्दत हो जाता है, जो उसकी महत्ता तथा उपयोगिता में उसी अनुपात में वृद्धि करता है । ४ ललित परस्म्रमपस्यसमसाा _ १. हिन्दी में अक्षरक्रम से बननेवाले कुछ आरम्मिक दाब्द-कोठों की चर्चा आगे चढकर 'दाब्द क्रम थीर्षक प्रकरण में की गई है | नरम पवन बगल जपलरमनलगा ना .... पर सारा लिपकरण' सलसाग पकरफरलगनरगएनपसललगरपपतगवपकाकात लात




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