प्रताप - समीक्षा | Pratap Samiksha

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Pratap Samiksha by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৮৩ (ख) सैली का कोई ख्य र्विर नदी हुआ था । (ग) हिन्दी-गद्य पा प्रचार अधिक नहीं था। हिन्दी-गद्य की तीनों थ्रुटियों को दूर फरने का प्रयत द्विवेदी- युग में किया गया । इसके लिए घढ़े-बढ़े सादित्यिक युद्ध हुए। पर अन्त में अनवस्त परिथम और '्रध्यवसाय के फारण इस युग के लेखकों फो सफलता प्राण हुई । इस युग के प्रमुप लेसक, सर्व श्री मद्वीरप्रसाद हियेदी, या? श्याममुन्दरदास, सामचन्द्र शुः गुलाबराय, पाश्मुगुन्द गुप्त, माथवप्रसाद मिश्र, सरदार पूर्णलिंद, घन्द्रधर शर्मा गुलेरी, जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी, श्री गोग़लराम गदमरी, मिश्रवन्धु, पद्मसिंद शर्मों, भगवानदीन, राधारुप्णदास, प० देवीप्रसाद पूणं, माधव शुर, देवकीनन्दन सत्री, उ्वालञादत्त शमा, सीताराम, रामचन्द्र पर्मा, गौरीशंकर हवीराचन्द ओफा आदि-आदि हैं। इन लेखकों फे सराइनीय प्रयत्न से, नियन्ध, समालोयना, भाटक, उपन्यास, इतिदास, विज्ञान, श्र्थशाल्, राजनीति, समाज-शास्र; पुरातत्व, अमण, जीवन-चरित्र, शिक्षा आदि अनेकानेझ विषयों पर सुन्दर श्चनाएँ होने लगीं । आधुनिक-युग ऊपर जो सूची दी गई है, उसमें के अधिकरॉश महालुभाव हमें आधुनिक युग में ले आते हैँ। घहुत से नये लेखक भी आज अपनी प्रतिभाप्रभा से गद्य-साहित्य-संसार को आलोकित कर रद्दे हैं । इसमें सर्वश्री स्व० जयशंकर प्रसाद', गोविंदपत्ञभ पन्‍्त, उग्र, सुदर्शन, पद्रीनाथ भट्ट, प्रेमचन्द, विश्म्भरनाथ कौशिक, गुलाबराय, बृन्द्रावनलाल वमौ, रायकृष्णशस, श्रीराम शमा, पदुमल्ाल पुन्नालाल बख्शी, रामनाथ लाल, वावूयव पराइकर, नलिनीमोहन सान्याल, घीरेन्द्र चर्मा, जैनेन्द्र, बनारसीदास




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