हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | Hindi Sahitya Ka Alochanatmak Itihas

Hindi Sahitya Ka Alochanatmak Itihas by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास सं० १९८७ में रायबहादुर बाबू इयामसुन्दरदास बी० ए० का हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य ग्रव्थ लिखा गया । इसका भाषा भाग बावू साहब भाषा सर की पूर्व लिखित भाषा-विज्ञान पुस्तक का एक परिवतित भाग साहित्य मात्र है । साहित्य-भाग में हिन्दी की प्रमुख धाराओं उनके विकास श्रौर विस्तार का निरूपण किया गया है । इस साहित्य- भाग में लेखकों और कवियों की कृतियों के उदाहरण नहीं हें उनका विवरण झवद्य है। संवत्‌ २००१ में हिन्दी साहित्य-भाग का परिवद्धित श्रौर परिमाजित संस्करण प्रकाशित हुभ्रा । पहले की श्रावृत्तियों से इस संस्करण में अनेक अन्तर हूं यद्यपि मूल झाकार पुवेवत्‌ ही है। इसका उद्देश्य पहले से यह था कि भिन्न-भिन्न काल की मूल वृत्तियों का वर्णन किया जाय । जिस काल में जेसी राजनीतिक धार्मिक श्रौर सामाजिक परिस्थिति थी उसके वर्णन के साथ उस काल के मुख्य-मुख्य प्रवत्तेक कवियों का वर्णन भी रहे । यह अंश ज्यों का त्यों है। कवियों के विषय में जो नए झ्रनुसन्धान हुए हैँ उनके ्राघार पर साहित्यिक स्थिति के वर्णन में शझ्रावव्यक परिवर्तन किए गए हें और कवियों की कविता के नमूने भी दिए गए हैं । इस झंश में विशेष परिवर्तन है । इसी समय पं ० अयोध्यारसिह उपाध्याय ने बाबू रामदीनसिंह रीडरकिप के सम्बन्ध से पटना यूनिवर्सिटी में हिन्दी भाषा श्रौर उसके हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य का विकास पर व्याख्यान दिया । इसमें भाषा और उसके साहित्य... साहित्य पर पाण्डित्यपूर्ण आ्रालोचना की गई है श्रौर इतिहास का विकास. का विकास भी भ्च्छी तरह से दिया है। ७१४ पृष्ठों की इस व्याख्यानमाला से हिन्दी साहित्य की रूपरेखा यथेष्ट स्पष्ट हो गई है । एक श्रौर इतिहास सं० १९८७ में लाहौर से प्रकाशित हुप्ना । इसके लेखक श्री सूयंकान्त शास्त्री हें। इस साहित्य की रूपरेखा झधिकतर के हिन्दी साहित्य का की ए हिस्ट्री आवू हिन्दी लिट्रेचर से निधारित हुई है । विवेचनात्मक इस इतिहास में लेखक ने प्रँप्रेजी साहित्य के भावों का प्रमाण इतिहास देते हुए हिन्दी-साहित्य को समझाने की चेष्टा की है । यद्यपि किसी साहित्य का वास्तविक महत्त्व उसी में अन्तहित भावना से समझाया जाना चाहिए श्रन्य साहित्य जो शअ्रन्य समाज का चित्रण है किसी भी दुसरे साहित्य के समझाने का साधन नहीं हो सकता तथापि जहाँ तक विद्व- जनीन भावनाओं से सम्बन्ध है उनकी तुलनात्मक व्याख्या अवश्य हो. सकती है १-दिन्दी सादित्य का विवे्वनात्मक इतिहास पृष्ठ ८




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