मनन और मंतव्य | Manan Aur Mantavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Manan Aur Mantavya by दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashanker Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashanker Mishra

Add Infomation AboutDurgashanker Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पाह्चुत्य विंचारकों की दृष्टि में काव्य का विभाजन ए है कि यह अनृकृति वास्तविकता की छाया, अथवा छाया की भी छाबा है, फिर नी उसने कलाओं के अनुक्ठतिमूलक হলভত্র को पहचाना 1 उसने कछाओं द्वारा प्राप्त होने दाले आनन्द पर भी प्रकाश डाछठा । उसका विचार था कि यद्यपि वे हमें वास्तविक आनन्द नही ढेतीं, वरन्‌ एक अमात्मक बानन्द देती हैं। फिर भी उसने कलायो की आदन्दात्मक सत्ता को स्वीकार किया | प्ठेटो ने काव्यकला, मूतिकला, चित्रकछा तथा संगीतकला आदि की समरूपता को पहचावक्र उनका वर्गीकरण एक ही (कला) श्रेणी के बन्तर्गेत क्रिया 149 . प्लेटो के साहित्य-सम्बंधी विचारों का मूल्यांकन करते समय हमें यह भी न भूलना .चाहिए कि उसने अंपने समकालछोतव साहित्य को देखकर ही बपना मत निर्धारित किया था । चूँकि वह संसार में श्रेप्ठ राज्य, श्रेष्ठ समाज व श्रेष्ठ आदर्शझों की स्थापना करना चाहता था पर साहित्य व कला का तत्कालीन रूप उम्च लक्ष्य को पूर्वि न कर समाज में उच्छुंखलता फैठा रहा था अतः उसने साहित्य व कछा की घोर निन्दा ही प्रारंभ कर दी लेकिन उसके बालोचना सम्बंधी विचारों को स्वंधा उपेक्षणीय व समझना चाहिए । डॉ. निर्मेछा जैच के बब्दों में “प्लेटो का वाविर्भाव पाइ्चात्य न्ाव-विन्नान के क्षेत्र की एक एतिद्ासिक घटना है । काव्यवास्त्र की दृष्टि से यद्यपि उन्‍हें आाद्याचार्य होने का गौरव नही दिया जाता, आज भी उस पर उनके चिष्य बरस्तु হী अधिप्ठिव है परन्तु प्लेटो क ऐतिहासिक महत्व इससे कम नहीं होंता 1... .प्लेहो का ऐतिहासिक महत्व अम्ंदिव्य हैं। उनका काव्यज्यास्त्रीय महत्व न्नी पर्याप्त हैं1., . .. .काव्य के मौलिक चत्यों के तात्विक -विवेचन में यूरोप के मनःज्षास्त्रविद्‌ आचार्यों एवं दार्इ निकों का योगदान अधिक महत्व्यूर्ग स्वीकार किया जाता है ओर प्छेटो इन दार्शनिको ন प्रवम थे 1. . .-प्टेटो ने मनःगास्व के विका ते इतने पूर्व आवि- मूत हकर मी कत्ििपव एसे मनोवेनानिक्त सत्यो का उद्घाटन कतिया है जो बाज भी, काव्य-सम्वंधी मनोवेन्न।निक प्रदनों की नीव हैं 17१ * साथही परवर्ती समीक्षकों पर भी प्लेटो का पर्याप्त प्रभाव दीख पड़ता है और डॉ. रवींद्र सहाय वर्मा के छब्दों में “प्लेटो ने आलोचना थ्ास्त्र का जो मार्ग प्रशस्त किया था उसी पर चछकर उसके परवर्ती दर्शनवेत्ताओं ने अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया 1१3 इतना होते हुए भी पाइचात्य काव्यक्मास्त्र का सर्वप्रथम छेखक जरस्तू (अरिस्टॉटिक)की हीं ११, , वाधुनिक साहित्य--श्री, नंददुछारे वाजपेयी; पृष्ठ ४२५-४२६ २. জ্উতী के काव्य सिद्धात--डॉ. निर्मछा जैन; पृष्ठ १०३-१११ १३. पाच्चात्य साहित्यालोचच आर हिन्दी पर उसका प्रभाव--डॉ. रवीद्धउह्माय वर्मा; पृष्ठ ५०-५१,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now