धर्मं - व्याख्या | Dharam -vyakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म-व्याख्या ७
अपने पक्ष में प्रस्ताव पास करा लेते हैं । ऐसे प्रजा-नाशक कानूनों
के बनाने के समय, उसका विरोध करना प्रजा की ओर से चुने
शये मेम्बरों का कर्तव्य है, किन्तु वे लोग नगर-धमं पर ध्यान न
देकर, अपने कर्तव्य से गिर जाते हैं ।
कुछ लोग कहते हैं कि 'ऐसे बिल्ों का विरोध करके, यदि
कोई मनुष्य उन्हें रुकवा दे, तो उससे तो राजा का विरोध होगा
ओर राजा के विरुद्ध काम करने की शास्वों मे मनाई है)
ऐसा कहने वाले झास्त्र के मर्मे को नहीं जानते । झास्त्र में
एक जगह आया है कि--+-
विरुद्ध रज्जाइ कम्मे'
[ उपासक दक्षांग सूत्र ]
श्र्थात्--राञ्य फे विरुद्ध काये न करना चाहिये ।
शास्त्र तो कहता है कि राज्य के विरुद्ध कार्य न करना
चाहिये ओर लोगों ने इसका यह अर्थ छगाया है कि राजा के
विरुद्ध कोई कार्य व करना चाहिये ।
ज्य, देश की सु-व्यवस्था को ही कहते है । परन्तु. राजा
की श्रनीति के विरुद्ध कार्य करते को या भावाज उठाने को जैन
शास्त्र कहीं नहीं रोकता | - | ।
आज, शराव, गांजा; भंग आदि के प्रचार की ठेकेदारः
सरकार हो रही है । यदि सरकार की आवकारी की आय कम हो
भौर वह एक सरक्यूलर निकाल दे कि प्रत्येक प्रजा-जन को . एक-
एक ग्लास दाराब रोज पीनी चाहिये ताकि राज्य के आज्रकारी
विभाग की आय बढ़ जाय” तो क्या इस आज्ञा का पालन आप
लोग करेंगे ?
ধলা हीं 3
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