आयुर्वेद का बृहत इतिहास | Ayurved Ka Brihat Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ददिक काल या प्रागंतिहासिक काल २१ पुरोहित अगस्त्य खेल नामक राजा की पत्नी विस्पला के लिए घातु--लोह की टाँग के लिए अदिविनौ से प्रार्थना करता है कि वस्पला की टाँग युद्ध में कट गयी है इसलिए तुम जत्दी आकर राति में ही पक्षी के पर के समान हलकी टाँग चलने के लिए छगा दो । आँखों का दान--कऋजादव को उसके पिता वृषगिर ने शाप से अन्धा बना दिया था क्योंकि उसने वृक के लिए एक सा भेड़ों को दिया था। इस ऋजाइव को अश्विनौ ने पुनः आँखें प्रदान की थीं क्योंकि अश्विनौ ही वृक रूप में थे। ऋ. श११६1१६ उ्यवन कऋषि को पुनः यवा करना--इसका उल्लेख ऋग्वेद में है। च्यवन ऋषि के सम्कव में पुराणों में उपाख्यान मिलता है परन्तु बेद में इस उपाख्यान का कोई उल्लेख नहीं । ऋद ७1७१५ दिव्य वेद्--वेद में वैद्य का लक्षण बताते हुए कहा गया है-- १ सम्पूर्ण ओपधियों को अपने पास ठीक रखनेवाला २ विशेष प्रबुद्ग--अपने शास्त्र का पूर्ण सांगोपांग ज्ञाता ३ युक्ति और योजना को जाननेवाला भिसज्यति ४ राक्षसों का नाश करने में समथ और ५ रोगों को जड़ से उखाड़ सके चातन ये पाँच लक्षण निम्न मंत्र में कहे गये हैं । यत्रौषघी ससग्सत राजानः समितामिव । विष्र स उच्पते निषग रक्षोहामीवचातनः ॥। जिस प्रकार से राज़ा लोग अथवा क्षत्रिय सभा में एक होते हैं उस प्रकार से जहाँ ओषधियाँ इकट्ठी होती हैं उस विशेष मनुष्य को वैद्य कहते हैं वही राक्षसों का हनन करनेवाला और रोग दूर करनेवाला कहा जाता है । राक्षसों के लिए वेद में रक्ष असुर यातुधान आदि शब्द आते हैं । १. तुलना कोजिए निम्न इलोकों से-- भरते पयवदातत्वं बहुशो दुष्टकमेंता । दाकष्य॑ दौचमिति ज्षेय॑ वैद्य गुणचतुष्टयम्‌ ॥ चरक. सु. अ. ९६ तस्दाधिगतशास्त्रार्यों दृष्टकर्मा स्वयंकृति । लघुहस्तः शुचि श्र सज्जोपस्करभषज ॥। प्रत्युत्पन्नम तिर्घोमान्‌ व्यवसायी विज्ञारद । सत्यघमंपरो यइ्य स भिषक्‌पाद उच्यते ॥ सुश्रुत. सु. अ. २४१०-२०




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