देश जिन्हे भूल गया | Desh Jinhe Bhul Gya

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Desh Jinhe Bhul Gya by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर देश जिन्हें भूल गया | [ ११ ३४ वर्षों के निर्वासिन के वाद श्रौर उन पैतीस वर्पों मे संघर्ष का जीवन'वित्ताने तथा श्रपने निर्वल झरीर की चिता न कर श्रथक परिश्रम करने के कारण उनका स्वास्थ्य गिर गया । वे झणक्त हों गईं परन्तु फिर भी वे प्रत्येक क्षण मातृभ्ूमि के लिए ही जीवित रहती थी । जब उन्हे लगा कि उनका जीवन दीप बुभनने वाला है तो वे मातृभूमि की पांवन घरा पर चिरनिद्रा मे सोने के लिए लालायित हो उठी । ब्रिटिश सरकार उन्हे भारत जाने का पासपोर्ट देने के लिएं तैयार नहीं थी बहुत कुछ प्रयत्न करने पर उन्हे भांरत जाने के लिए पासपोर्ट तो मिल गया परन्तु जब थे बम्वई पहुची तव तक उनका स्वास्थ्य बहुत अधिक गिर चुका था । वम्बई पहुंचते ही उन्हे पारसी हास्पिटल ले जाया गया जहा श्राठ महीवे तक रोगी शय्या पर रहकर मातृभूमि की स्वतत्रत्ता के लिए श्रपने जीवन का बलिदान कर देने वाली वह देवी १६ श्रगरत १९३६ को चिरनिद्रा मे निमग्न हो गई । अपनी मृत्यु के पुर्व उन्होंने राष्ट्र को नीचे लिखे में श्रपना ' प्रेरणादायक सदेश दियां था “जो व्यक्ति अपनी रवतत्रता खो देता है वह शभ्रपने सद्गुणो से भी घो बैठता है । भ्रत्याचार का प्रतिरोध ही भगवान की श्राज्ञा पालन है ।” हम कृतध्न भारतीयों ने उस स्वतत्रता की देवी को स्मृति की रक्षा करने के लिए कुछ करने की झ्रावश्यकता नहीं समभझी । उनका प्रेरणादायक जीवन चरित्र नहीं लिखा गया कोई स्मारक नद्दी *वना । केवल डाक विभाय ने उनके नाम का डाक टिकट निकाल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समभली । ' जहा कृतष्न भारतीयों ने भारत माता की उस वरद पुत्री की श्रत्यस्त उपेक्षा की । जिसको देखकर स्वय कृतध्नता भी लज्जित हुई होर्ग। वहा पेरिस में जहा उस देवा ने झ्रपते जीवन के वर्ष व्यतीत किए थे चही “पैरे ला-चेज' सिमटरी मे उनके प्रश्सकों ने एक स्तूंपशिला उनकी रमृति में स्थापित की जिस पर नीचे लिखे वावय श्रकित है जो युगो-युगो तक स्वतत्रता के प्रेमियों की श्रनुप्राणित करते रहेगे । न * 6 10565. 0८0६9, 10865 ' 5 घट, ' (0 १४ 006018ा06 (0 0०0,” “जो श्रपनी' स्वतत्रता खो देता है वह श्रपने सदुगरणी से भी हाथ धो बैठता हैं । '्नत्याचार का प्रतिरोध ही भगवान की श्राज्ञा पालन है ।” मैडम कामा केवल प्रभावशाली वक्ता म्रौर लोह लेखनी का धनी ही नहीं थी थे कुशल राजनीतिज्ञ भी थी उन्होंने फ्रास, जरमनी, स्विटज़रलैंड तथा ' योरोप के झन्य देशो के समा जवादियों से घनिप्ट सम्पक स्थापित कर लिया था श्रौर उनकी तथा उनके संगेठनो की भारत की स्वतत्रत। के पक्ष में सक्रिय सहानुभुति प्राप्त करली थो । जब भारत सरकार ने. लाला लाजपत्त राय श्रौर सरदार श्रजीतासिह को देश से निर्नासित कर दिया तब उस भारत की स्वतत्रत्ता की देवी ने जो श्रपील निकाली उसको श्रमे रिवन, फ्रैंच, जरमनी, शरीर श्विटज़ रलेंड के पत्रों ने सुख पृष्ठ पर प्रकाशित रिया श्रौर उनकी प्रपील का समर्थन करते हुए सहानुभुतिपूर्ण सम्पादकीय टिप्पणिया लिखीं । उन्होंने फेवल योरोप तथा श्रमेरिका के प्रगत्तिशील राजनीतिज्ञों से हो निकट सम्बंध स्थापित कर उनकी भारत के लिए सहानुभूति प्राप्त नही को वरन उन सभी देशो के राजनीतिक नेताग्रो से भी घनिप्ट सम्बंध स्थापित कर लिया जोकि श्रपने «4 स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे ।




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