दिवाकर दिव्य ज्योति १० | Diwakar Divya Jyoti [ Vol. - 10 ]

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Diwakar Divya Jyoti [ Vol. - 10 ] by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्त-समागम | ` [ ११ इसी देश में उत्पन्न हुए हैं । उन्होंने अ्रध्यात्मज्ञान का प्रसार किया है। अनाय॑ देशों में से किसने इनके मुकाविले का एक भी महा* पुरुष प्रदान किया है ? आझ्रार्य देशों का तो यह हाल है कि जो भ्रार्य देशीय वहां विद्याधष्ययन के लिए या व्यापार आदि के लिए जाते है, उनके भी सदाचार्‌ का ठिकाना नहीं रहता । उनके लिए मांस मदिरा का सेवन साधारण वात हो जाती है । किसी का भाग्य और संस्कार ही अच्छे हों तो भले बच जाय । वहां को वातावरण ही ऐसा है । कहा है:-- कानलका कोठरीमें कंसे हु सयानो जाय, काजल को एक रेख लागि है प॑ लागि है ॥ काजल की कोठरी में घुसने वाला कितना ही चतुर श्र सावधान क्यों न हो, कितनी ही बचने की कोशिश करे, मशर फहीं न कहीं एक रेखा लगे त्रिना नहीं रह सकती । इसी प्रकार वहां के वातावरण और खानणन में मांस-मदिरा श्रादि घुरित पदार्थों से बचना कठिन है । ज्ञानी पुरुषों का कथन है कि. जिसने धर्म श्रद्धा का परित्याग कर दिया है और जिसे ईश्वर के प्रति विश्वास नहों है, उसको सोहवत मत करो । ऐसे अ्रनार्य की वात मत मानो । जो ईश्वर और धर्म को नहीं म'तता, समझ लो कि उसको खोपड़ी में भूसा भर गया है । ऐसा आदमी संगति करने योग्य नहीं है । : अनन्त काल भटको ग्ात्मा फिर भो मुक्ति नहीं पाती है। शानो को সাবা কী पाले, तब छिन में कर्म खपाती है ||




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