दिवाकर दिव्य ज्योति १० | Diwakar Divya Jyoti [ Vol. - 10 ]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्त-समागम | ` [ ११
इसी देश में उत्पन्न हुए हैं । उन्होंने अ्रध्यात्मज्ञान का प्रसार किया
है। अनाय॑ देशों में से किसने इनके मुकाविले का एक भी महा*
पुरुष प्रदान किया है ? आझ्रार्य देशों का तो यह हाल है कि जो
भ्रार्य देशीय वहां विद्याधष्ययन के लिए या व्यापार आदि के लिए
जाते है, उनके भी सदाचार् का ठिकाना नहीं रहता । उनके लिए
मांस मदिरा का सेवन साधारण वात हो जाती है । किसी का
भाग्य और संस्कार ही अच्छे हों तो भले बच जाय । वहां को
वातावरण ही ऐसा है । कहा है:--
कानलका कोठरीमें कंसे हु सयानो जाय,
काजल को एक रेख लागि है प॑ लागि है ॥
काजल की कोठरी में घुसने वाला कितना ही चतुर श्र
सावधान क्यों न हो, कितनी ही बचने की कोशिश करे, मशर
फहीं न कहीं एक रेखा लगे त्रिना नहीं रह सकती । इसी प्रकार
वहां के वातावरण और खानणन में मांस-मदिरा श्रादि घुरित
पदार्थों से बचना कठिन है ।
ज्ञानी पुरुषों का कथन है कि. जिसने धर्म श्रद्धा का परित्याग
कर दिया है और जिसे ईश्वर के प्रति विश्वास नहों है, उसको
सोहवत मत करो । ऐसे अ्रनार्य की वात मत मानो । जो ईश्वर
और धर्म को नहीं म'तता, समझ लो कि उसको खोपड़ी में भूसा
भर गया है । ऐसा आदमी संगति करने योग्य नहीं है ।
: अनन्त काल भटको ग्ात्मा फिर भो मुक्ति नहीं पाती है।
शानो को সাবা কী पाले, तब छिन में कर्म खपाती है ||
User Reviews
No Reviews | Add Yours...