जाहरपीर गुरु गुग्गा | Jaharapeer Guru Gugga

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Jaharapeer Guru Gugga by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाहरपीर गृरु गृग्गा ११ था उसमें ही रहने दिया । कामरू को स्मिया जल लेने उसी कुएं पर श्रायी, तो सोख- नाथ ने उन्हें गदहिया वना कर एक पास को गुफा में वद कर दिया । श्रव कामं म शोर मचा। गोरखनाथ ने कहा--हमारे चेलो को तुम लोग मुक्त करदो तो तुम्हारी स्त्रिया भो मुक्त हो जायगी। पुरुषों ने घरो में वद तोतो मैनो के गले के वधो को तोड डाला, गोरखनाथ के दिष्य श्रपना अपना रूप पाकर गुरू के पास श्रागये । श्रौघड- नाथ रह गये | वे एफ तेलो के यहा वैल बने पाट चला रहे थे । गोरख ने बताया तो लोगो ने उन्हें भो मुक्त किया। तब गोरखनाथ ने मोखनाथ से कहा कि अब स्त्रियों को मुक्त कर दो। सोखनाथ ने सबको तो मुक्त कर दिया, पर वहु एक घौविन प्र रोझ गया, उस्ते नहीं किया । उक्षन गुह से कह दिया “भले हो मुझे 'मेख' के बाहर कर दीजिये पर में इसे नहीं दूगा | गृरूजो ने धोवी को समझा दिया श्रौर सोखनाथ को शाप दिया कि तुम जगलो में रहोगे श्रोर साप खिला खिला कर शअ्रपनी जीविका चनाग्रोगे । इन्दी सोवनाय कौ परपरा में सेंवेरे हैं ।”१८ इससे यह विदित होता है कि संपेरे कभो पूरी तर्ह्‌ गोरख सप्रदायातुयायी थे । गोरखनाथ ने कितने ही पथो को श्रपने क्षेत्र में से वहिष्कृत कर दिया था। सँपेरे उन्ही में से एक हूँ। इस प्रकार सापो का गोरख-सप्रदाय से श्रप्रत्यक्ष सबध तो विदित होता ही है । गोरखनाथ सिद्ध थे, और उनकी সাল লঙ্গী में विद्यमान है* । सापो को कोलन में क्रथवा उतका विप उत्तारने में भी गोरख-विधि का उपयोग होता होगा। श्रत गोरख-सप्रदाय से सवधित होने के कारण गृगाजी म मी गुरू विपयक सिद्धि की स्थापना हुई होगो, प्रर गूगाजी सापो से सवधित हौ गये होगे! भादो मे जन्म लेने से जो मान्यता उन्हें मिलो वह इस सयोग से और दुढ हुई होगी । यहाँ यह बात लिख देना आवश्यक है कि गोगाजी का स॑ंपेरों से भी कोई सीधा सबंध है, इसके प्रमाण नहीं मिले । नाथ संप्रदाय की संपेरोवाली शाखा भी गूगाजी को मानती है यह विदित भ्रमी तक नही दो सकादै ! गृगा को मानने वाले श्रौषदनाथजी को परपरा में ही प्राय मिलते हुं । (३) गोगामेडो ক্মশনা गोगानो पुनो के मेले कै लिए प्रसिद्ध है, गोगाजी कौ कथा से यह्‌ विदित होता है कि माता से श्रपमानित होने पर वे गोरखनाथ जी से मिले | गोरखनाथ जी ने कहा कि यहा तुम श्रपना घोडा घमाझों घोडे से वारह कोस का चक्कर लगाया, उसके वीच मे धरती फट गयौ, जिससे घोडे के साय गोगाजौ समा गये । वारह्‌ कोस का वह घेरा जगल होगया । यह्‌ कथाद यह सकेत करता है कि जहा गोगाजी ने समाधि ली वहा ग्‌. गोरखनाथ विद्यमान थे । इसमें ऐतिहासिक गोरखनाथ का उल्लेख है या नही, यह तो दुसरी वात है, पर यह कथाश इतना तो श्रयश्य ही वताता है कि जदा गूगा ने समाधि ली वह्‌ स्थान गोरख- नाच कास्यान था 1 वह्‌ प्रवद्य गृगाजी से पूवं गौरख के नाम से प्रसिद्ध रहा होगा । वदी प्रसिद्धि वहां गगा को मिलौ। यह बात लक्ष्य करने योग्य है कि समाधि से कुछ हो दूर, सभवत एक कोस पर, एक गोरखटोला भ्राज भौ गोगानो मे विद्यमान है । इस १८५ सूखानाय से प्राप्त ! ये सिरोटो श्रनरा के ह 1 * देखिये--“भारतीय साहित्य! प्रथम श्रक, 'मव्र' गोपक लेख |




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