सामवेद संहिता | Samved Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दा नर पक (खत, .धलग, ,क. विद, 4 विकसित. कि... कि विवि, -..पकिलि किस: कि. विवि 2, मििक अर किक नह उ्लितिक,के..लीडिकि, की, है हर्ट हु... हक. हि ई कु म् ही कुल्यम. कक कक कवरफम्कशाल दल जान कक कक के अयादिनजलिरवटटिटिककजट देकर 1 अस्मयज्ञाय संचन्तु, यश्ञाजूमावाय च मवन्तुः इत्यथ: । आप, ने है. 4. अस्मत्सस्वास्घन पातये पानाय च दा सुख मवन्तु डे | तथा. दाम : डर 1 | ग 'आभिष्ये, मवन्तु ) दिव्य जद हमारे यश्कके अड् वर्म ( सः पीतय, दो, अग्निम उपस्तुषहि उपत्य स्तात कुरु। कादराम! कि मेघाधिन सस्थ ह; 'घर्माणम सत््यवचनरुूपेश्ण घर्मेणोपंतं,दूव दोलसमानस,अर्मावसालनम है अमीवानां 1हुसकामा राजणा वा आातकम ॥ १२ कै | दाचुआंक नाशक ( आग्निम ) अग्निदेवकों ( उपस्तुहठि ) उपस्थित ह (१६) # सामवेद्संडिता-आग्नेय पे % ; दकसमकाकाभलकरकॉलिकशन ३२३४ १ श्र इर.: कक विमर्निमुप स्ठाहटि सत्यघम हर डै देवममीवचातनम्‌ ॥ है लि. खाए के अथ द्वादशी । मेघातिधिकापे: । है स्तातसंघ ! अध्यर ऋत हे उपासकों ! ( अध्वरे) यज्ञमें ( कविम्‌ ) सेघावी (सत्यघमौणाम) $ सत्यवचन रूप धर्मेसे युक्त ( देवम ) चोतमास ( अमीवखालनम ) होकर स्तुति करो ॥ १२ ॥ हे. ₹ २ शरशे्श्श्े १ रे 3१२ ५, के गे शं नो. देवीरमिष्ये शं नो भवन्तु पीतये। रेड ३१ २ 7. शं योरभिखवन्तु न || कल. अथ अयोद्शी । सिन्घुद्धी पो 5स्वरीपों या सूत आसो वा ऋषि! । न है. अस्माक पापापनादद्वारण दा सुख मवन्तु। दवा: दब्य: भाप: अभिष््स. ( नः, शस्र ) हमारे पाप दूर होकर कु त्र प्राप्त हो ( देवी, आप', न हुए रोगांकों दुर करें ( नः,. | आानि, खबन्तु ) हमारे ऊपर असुतरूपसे टपकें॥ १३॥




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