रवीन्द्र - साहित्य भाग 3 | Ravindra Sahitya Bhag 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दाढिया. ; कहानी ट्व की गई। उस बिपत्तिके समय, छोटी लड़की अमीनाको उन्होंने स्वयं नदीमें पटक दिया । बड़ी छड़कीने अपने-आप आत्मह्या कर छी । ममठी लड़की जुलेखा अपने पिताके खास और विधवस्त खिद्मदगार रहमत अलीके साथ तेरकर निकल गई । और शुजाने लड़ते-छड़ते अपनी जान दे दी । अमीना नदीके बहावमें बहकर देवयोगसे जल्द ही एक 'घीवरके जाठमें उठभ गई; और धीवरने उसे तुरन्त ही निकाछ लिया । उस धीवरके घर दी वह पढी और बड़ी हुई । इस बीचमें बूढ़े राजाकी ग्रत्यु दो गई ; और युवराज गंद्दीपर बैठे । पु एक दिन सबेरे बूढ़े घीवरने आकर अमीनाको डॉटकर 'कहा--“चिन्नी 7” -'घीवरने अपनी अराकानी भाषासें अमीनाका नया नाम रखा था 'तिन्नी' । बोला-'“विन्नी: भाज सवेरेसे तुमे हो क्या गया है' ? काम-धन्वेमें बिठकुछ हाथ ही नहीं 'छगाया ? नये जाठमें गोंद भी नहीं छगाया; हमारी नाव--” असीनाने घीवरके पास जाकर बड़े प्यारसे कद्दा-“बाबा, आज मेरी बहन आई है; बहन ! इसढिए आज छुट्टी मना रही हूं !” “अरे | तेरी बहन कहाँसे आई री ?” जुलेखा न-जाने कहाँसे निकठ आई ; बोठी--“में हुं; में !” बूढ़ा दंग रह गया। और फिर, जुदेखाके बिठकुछ पास आकर गोरसे उसका मुंह देखने छगा ।




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