सुलभ वस्तुशास्त्र | Sulamb Vastu Shastra

Sulamb Vastu Shastra by रघुनाथ श्रीपाद देशपांडे - Raghunath Sripad Deshpande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दी सुलभ वास्तुशाखर 0०५0 श--लागत जिस समय मनुष्य अपने रहनेके लिये अपना निजी भवन घन- वानेंका सकत्प करता है उस समय उसके सन्मुख प्रमुखतया दो विकट समस्याएं उपस्थित हो जाती है । जिनको सुलझाये बिना वह अपने इप्ट उद्दे्यकी फाये परिणत्‌ करनेमें कभी समर्थ नहीं हो सकता । ये समस्याए ऐसी जटिल एवम विकट होती है कि यदि आरम्स ही से मनुष्य उनकी ओर स्यान न दे तो आगे घठकर उसके छत संकप में वढी-चडी घाधाएँ उपस्थित हो जाती हैं। जिनके कारण उसे अपने किये पर अत्यन्त पर्चात्ताप करना पड़ता तथा भयद्वर हानिके साथ-साथ चित्तके आनन्दसे एवम्‌ मनोनीत आशधामय फल्पनाओंसे सदाके लिये हाथ घोना पदता है । किन्त यदि आरम्मभ ही मतुष्य उनकी ओर ध्यान रखता छुआ भवन निम्मांणके मनोरथ की प्रर्तिका विचार करे तो उसका यही काय अत्यन्त उत्तम आनन्ददायी और आशामय रूपसे सम्पन्न होता है । किसी भी कार्य्यको करने का सकल्प करनेके प्रव्व॑ मनुष्यको अपनी दाक्ति-परिस्यिति एवम आयश्यकताका अन्वाज लगाना पढता है । यों तो इस आद्यामय जगतमें मनुष्यकी आवश्यफताए कभी कम नहीं होतीं। तथापि जो आवश्यकताए उसकी दक्ति एवम परिस्थितिकी अधिकार सीमामें आती है वे अवश्य पूर्ण रोती हैं और गलुप्यको उन्दींसे छुड आशा करनी चाहिये तथा उन्हींको सन्मुख रखते अपने जीवन सौंख्यका मार्ग स्थिर करना चाहिये ।




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