नाटक बहुरूपी | Natak Bahurupee

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Natak Bahurupee by लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

Add Infomation AboutLaxminarayan Lal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दहा 3 भ्रच्छा नहीं ! नहीं बेटी । मुझे माफ कर दो बेटी ! सुशी, .. ऐसे न देख मुझे। मुझे माफ कर दे बेटी ! श्रव मैं ऐसी बात कभी नहों कहूुँगा ''कभी नहीं। कभी नहीं। कभी नहीं । [ भरे कण्ठसे | हाँ, बहुत बुखार है तेरी गुड़िया- द को-नहीं नहीं, तेरी बेटीको ! बहुत बुखार है ! বৃহীলা : एक सौ चार डिग्री है दहा | खाँसी भी बहुत है। सारा ... सीना जकड़ा हुआ है। बेचारी रो नहीं पाती ! देखिए साँस किस तरह ले रही है | कितनी तकलीफ है इसे ! दहा $हाँ बेटी, बहुत तकलीफ है ! बहुत तकलीफ। आ्रँखोंमें कितना ददं है! ऐसा दर्द जिसकी कोई भाषा नहीं-कोई संज्ञा नहीं 1 ˆ संजञाहीन ' “्रोषधिहीन ५; सुशीला $ किसी श्रच्छे डॉक्टरको दिखाइए दा इसे | द दहा : जरूर दिखाऊँगा बेटी ! सोच रहा हूँ किस डॉक्टरको . दिखाऊँ ? कौन-सा ऐसा डॉक्टर है जो*''जो इसे' 'इसे ` “1 [ ₹रुककर परिर्वातत स्वरमें ] सुनोबेटी, तुम ` अपने कमरेमें चलो । इसे हवा नहीं लगनी चाहिए ठण्ड लग गयी है ! सर्दी-बुखार है। इसीसे इसके भीतर कुछ जकड़ गया है । ध 3) | ध ः ः রর सुशीला : कहीं निमोनिया तो नहीं हो गया ? क्‍ ^, न दहा : नहीं नहीं । हरगिज नहीं । मामूली सर्दी-बुखार है। हाँ, सीने श्रौर गलेमें कुछ तनाव जरूर श्रा प्याह तुम .. कमरेमें इसे छिपाकर बैठो । मैं डॉक्टर श्र दवाका प्रबन्ध करता हूँ। यह जल्द अच्छी हो जायेगी बेटी। घबराओ्ों नहीं । इस समय कमरेमें चलो | | ` ০ | नष বে




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now