मेरी विकास - कथा अर्थात दिव्य - दर्शन | Meri Vikas - Katha Arthat Divya - Darshan

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Meri Vikas - Katha Arthat Divya - Darshan  by स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आकि, = + च १ उनके दुःख में दुःखी होने में नो आनन्द दै-उसको चराबरी कोन कर सकता है £ तुम्हारी ये बडी बडी आंले, जो आंसुओं का कटोस मादरम झोती हैं, इन पर सारा सौन्दर्य न्‍्यैछाबर किया जा सकता ই( तुम्हारी आंखों की एक एक वद मे सन र का सार भरा इअ है + इसौल्वि तो क्रियो न करुणरस को प्रधानस्स कदा दै 1 समी सम्ब द्वदयों में तुम्दास ही ते राज्य है दया | जी हां, पर आपके हृदय में तो नहीं दे । सब कहा तुमने, मेरे दृदय में तुम्हारा राज्य तो नहीं है, पर में तुम्हारा जितना खा रखता हूं-उतता किसी «सरे का नहीं रखता । इसीलिये मेरे कपड़ों पर जब चाहे तब कैंची चलाया करते हैं ! अधूरी बात न बोले दया, में कैंची भी चलाता हूं. ओर सुई भी । काइता भी हूं और जोड़ता भी हूं । आडिर में तुम्हारा दर्जी हं-ठीक पोशाक बनाने के लिये यह सब्र करना द्वी पडता है | छोटे फिता की बातें। से सभी हँसने ठंगे । में भी सा, पर इस हँसी के आनन्द से अधिक आनन्द मुझे यह देखकर हुआ कि दया का छोटे पिता से कैसा मीठा सम्बन्ध दे | बल्कि मैंने त्तो यदी ~ 5 সি नुभव किया के ये चारों देब-देवियां जब तक छोटे पिता के अकुश में हें तभी तक ठीक हैं | में यह सब सोच ही रद्दा था ।के छोट पिता ने मेरी तरफ देखकर कद्दा-क्यों रे ! क्या सोचता है ! इनमें से त किसे पसन्द करता है !




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