मेरी विकास - कथा अर्थात दिव्य - दर्शन | Meri Vikas - Katha Arthat Divya - Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आकि, = + च १
उनके दुःख में दुःखी होने में नो आनन्द दै-उसको चराबरी कोन
कर सकता है £ तुम्हारी ये बडी बडी आंले, जो आंसुओं का कटोस
मादरम झोती हैं, इन पर सारा सौन्दर्य न््यैछाबर किया जा सकता ই(
तुम्हारी आंखों की एक एक वद मे सन र का सार भरा इअ है +
इसौल्वि तो क्रियो न करुणरस को प्रधानस्स कदा दै 1 समी सम्ब
द्वदयों में तुम्दास ही ते राज्य है दया |
जी हां, पर आपके हृदय में तो नहीं दे ।
सब कहा तुमने, मेरे दृदय में तुम्हारा राज्य तो नहीं है, पर
में तुम्हारा जितना खा रखता हूं-उतता किसी «सरे का नहीं
रखता ।
इसीलिये मेरे कपड़ों पर जब चाहे तब कैंची चलाया करते हैं !
अधूरी बात न बोले दया, में कैंची भी चलाता हूं. ओर
सुई भी । काइता भी हूं और जोड़ता भी हूं । आडिर में तुम्हारा
दर्जी हं-ठीक पोशाक बनाने के लिये यह सब्र करना द्वी पडता है |
छोटे फिता की बातें। से सभी हँसने ठंगे । में भी सा, पर
इस हँसी के आनन्द से अधिक आनन्द मुझे यह देखकर हुआ कि
दया का छोटे पिता से कैसा मीठा सम्बन्ध दे | बल्कि मैंने त्तो यदी
~ 5 সি
नुभव किया के ये चारों देब-देवियां जब तक छोटे पिता के
अकुश में हें तभी तक ठीक हैं |
में यह सब सोच ही रद्दा था ।के छोट पिता ने मेरी तरफ
देखकर कद्दा-क्यों रे ! क्या सोचता है ! इनमें से त किसे पसन्द
करता है !
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