आर्थिक विकास की कहानी | Arthik Vikas Ki Kahani

Arthik Vikas Ki Kahani by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृषि और पशुपालन का उदय ९ रिकारी अवस्था मे टौ मनुष्य कतिपय वृक्षो के फलो तथा पौवो के अनाजो की उपयोगिता को समञ्च गयाथा। वह जान ग्या था कि कौन से वृक्ष और पौधे अधिक उपयोगी हे ओर कौन से वृक्ष कम उपयोगी है । आरम्भ मे प्रत्येक वृक्ष जगली अवस्था में उत्पन्न होता था, अतएवं उपयोगी पौधो और दृक्षो के साथ साथ कम उपयोगी अथवा अनुपयोगी वृक्ष ओौर पौधे भौ उगे रहते ये । इस कारण मनुप्यो को उपयोगी पौधो के अनाज और वृक्षो के फलो को इकट्ठा करने मे बडी कठि- नाई होती थी । अतएव मनुव्य ने अनुययोगी वृक्षों और पौधो को क्ाटना आरम्भ कर दिया 1 इसका परिणाम यह होता था कि भूमि के एक टुकड़े पर केबल उपयोगी वृक्ष या पौधे हो खडे रहने दिए जाते थे, और जब फल या अनाज पकता था तो वह सरलता से इकट्ठा किया जा सकता था। अव मनुष्य ने देखा कि इस प्रकार अनुपयोगी वृक्षो और पौधो को नष्ट कर देने से उप- योगी वृक्षों और पौधो की নাহ अच्छी होती है और वे पहले की अपेक्षा अधिक फल भौर अन्न उत्पन्न करते है । इधर जनसख्या मे उत्तरोत्तर वुद्धि होने कै कारण मनुप्य को खाद्य पदार्थो कौ अधिक आवश्यकता अनुभव होने लगी थी। उसने देखा कि इस प्रकार फल और अन्न उत्पन्न करने से बहुत सी भूमि व्यर्थ रहती है क्योकि उन पौधों के बीच मे वहुत सी भूमि छूटी रहती थी । अतएव उसने भूमि के समस्त दुकडे को साफ करके उसे खोद कर वृक्ष तथा पौधो के वीज वरावर दूरी पर डाल कर उन्हें उत्पन्न करना आरम्भ कर दिया क्योकि वह यह देख चुका थाकि बीजसे ही वृक्ष या पौधा उत्पन्न होता है । तभी से मानव समाज ने कृषि करके अपने लिए खाद्य पदार्थे तथा अन्य उपयोगी वस्तुटु उत्पन्न करना आरम्भ कर दी ओर कृपि का प्रादुर्भाव हुआ । आरम्भ मे मनुप्ये जगलो को जलाकर साफ कर क्ते ओर फिर वीस या पन्नीस वयं उस पर अनवरत खेती करते रहते । उन्हे अनुभव से यह ज्ञात हुआ कि छूगातार एक ही भूमि पर बहुत वर्षों तक खेती करने से भूमि নিন होती जाती हैं और उसकी उर्वरा शक्ति का ह्लास होने छगता है तथा उपज कम होने लगती हूँ । अतएवं वह निर्बेल भूमि को छोड़ कर जगल के दूसरे टुकड़े को जलाकर साफ कर लेता और उस पर खेती करने छूगता 1




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