हमारी शिक्षा | Hamari Shikasha
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ हमारी शिक्षा
कर दिया“ ?--ये सब दुर्घटनाएँ केवल शारीरिक दुर्बलता के फलस्वरूप
न घटी | इनका मुख्य आधार मानसिक ज्ञोम था । भारतीय संस्कृति के सम्पर्क
में आते ही उन योद्धाञ्रों को पुनः एक बार मनुष्यता का स्मरण हो गया ।
फलत: यह स्वामाविक ही रहा कि वे अपने सगे-सम्बन्धियों से मिलने के
लिए आतुर हुए | दूर न जाकर हम अंग्रजों के ही काया-कल्प? पर विचार
करें | सन् १६४७ ई०के १५ अगस्त को उन्होंने मारतवर्ष से अपने विस्तर
इस प्रकार बाँध दिये मानों वे मेहमानी करके लौट रहे हों। संसार के
इतिहास में अपने ढज्ञ की यह प्रथम घटना है। लोग कह सकते हैं कि यह
सब विभिन्न परिस्थितियों के फलस्वरूप हुआ | ठीक भी है। पर परिस्थितियों
के अनुकूल टीक-टीक चलना-ठलना सबके लिए सम्मव नहीं।
परिस्थितियों को तौलने, समझने ओर फिर उसका उपयुक्त हल निकालने
के लिए पर्याप्त बुद्धि तथा विवेक की आवश्यकता होती है। छोटी-मोटी
स्वार्थ-सिद्धि के निमिच मनुष्य के विवेक पर माया का आवरण पड़ जाता है.
और अ्रपने गन्तव्य मार्ग से शीघ्र ही वह च्युत् हो जाता है और यहाँ तो
एक ऐसे विशाल साम्राज्य का प्रश्न था जिसे लोगों ने प्रायः सोने की
चिड़िया? सिद्ध किया है। इंगलेण्ड में उदार दलीय शासन अवश्य था
परन्तु वहाँ की कोई भी सरकार लोक-वाद के प्रतिकूल एक पग नहीं चलती |
वहाँ जो कुछ वाद-विवाद इस प्रसज्ञ पर हुआ अथवा ऐसे ही अन्य प्रसङ्गं पर
होता है उसका आधार केवल मतभेद रहता है न कि हृदय-भेद | वास्तव
में, भारत-भूमि, भारतीय वातावरण, भारतीय आदशों--विशेषतया स्वर्गीय
बापू के आत्मवबल और अहिंसावाद से समस्त अंगरेजी राष्ट्र इतना प्रभावित
हो चुका था कि उनके दृदय में इसके अ्रतिरिक्त अ्रन्य कोई न्यायपूर्ण मार्ग
इस रुग्वन्ध में दिखाई ही न पड़ा। इस उच्चकोटि के आदश-प्रतिपादन के
निमित्त अपेक्षित प्रेरणा तथा साहस अंग्रेजों को सर्वप्रथम यहीं सम्भव हुश्रा |
अब तो इसका प्रयोग अन्यत्र और इनक्नी देखा-देखी अन्य लोग भी कर सकते
ই ঘন্য ই! যহ जाहबी-पोषित मारतभूमि ।
आरम्भ में हमारी आवश्यकताएँ सीमित थों। जीवन मी वहत दी सादः
हागा। यह निश्चय दे कि इशधर-उघर बहत ऋछ भटकने के
4.
শি
[न
उपरान-
मंदियां को दाटियों में स्थिर हुए होगे | इस प्रकार स्थिर झूपसे बसने `
दाग आनान सम्भवतः हो लका था। दाल
# 41 865. 1
কা
1
५ 44८
८1
^
এ
য়
এ
~+
নর
८
~+
91
₹ পূনলা হহা হালা না জাই ন कोई ८
और प्रायः बुडिमान भी होता रहा £
User Reviews
No Reviews | Add Yours...