कालिदास कृत शाकुन्तल | Kalidas Krit Shakuntal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.78 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धन ब्राह्मणों की वाणी मेरे हृदय मे धारण रहेगी । वेखानस राजा हम लोग समिधा लाने जा रहे है। सामने मालिनी के तट पर हमारे गुरु कुलपति कण्वका आश्रम है शकुल्तला जिसकी अधिप्ठात्यके देवी की तरह है। किसी अन्य कार्य मै बचा न पड़ती हो तो वहाँ चलकर अतिथि-सत्कार स्वीकार करो । देखकर कि बिना किसी बाधा के तापस लोग यहाँ अपनी धमं-क्रियाएँ पूरी करते हे तुम्हे विदवास हो जाएगा कि तुम्हारी उंगली पर बना धनुष की डोरी का निदान किस तरह इस भूमि की रक्षा करता हे। दुष्यन्त कुलपति स्वय यही है ? बेखामस नहीं । अपनी बेटी शकुन्तला को अतलिधि-सत्कार फा आददा देकर अभी-अभी सोमतीर्थ गये है--उसके प्रतिकल ग्रह्मों की शान्ति का उपाय करने । ः तो हम उनकी बेटी मे थी मिल लगें । मसर्टापि के लोटन पर बी उनसे हमहरग भविन-निवेदन कर देगी |
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