अज्ञात जीवन | Agyat Jivan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अजित प्रसाद - Ajit Prasad
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श्री प्रकाश - Sri Prakash
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नसीरावाद छावनी ]
दण्ड की थी। उन दिंनों लोगों में अपराध करने की वृत्ति बहुत कम
थी | ऋूठ बोलना, ठे काराज्ञ वनाना; जाल-फुरेव, धोखा, वदनिवती
लोग जानते ही न थे।. अंगरेजी कचहरियाँ ओर वकालत का पेशा
बन जाने “से इस प्रकार के अरराधों से वृद्धि हो गई है; - यह मेरा निजी
अनुभव है। १६२६-३० में. में बीकानेर हाईकोर्ट का जब था।
२५००० वर्गमील के बीकानेर राज्य में,केवल एक हाईकोर्ट ही को
सेशन्स जज के अधिकार प्राप्त थे | राज्य भर में केवल २०० क़ोदी थे।
सेशन्स जजी का काम मेरे सुपुर्द था। और फौजदारी श्रपील भी में
शोर जजों के साथ सुनकर फैसला करता था। महीनों तक सेशन्स
कोर्ट का एक भी मुकदमा नहीं हुआ । गवादौ को मूठ बोलना श्राता
ही न था। अगर झूठ बोलते भी थे .तो घत्ररा जाते थे ओर उनका
मूठ सदज दी में खुल जाता था। अधिकतर अपराध. ऊंट की चोरी या
झौरत के बलात्कार भगा ले जाने के होते थे। पता लग जाने पर
अपराधी को रुपया देकर ऊँट या औरत को वापस ले लेते थे | पुलिस
में रपट कम की जाती थी। खोज लगाने वाले लोगों की सहायता से
लोग खुद ही अपने माल का पता लगा लेते थे | फाँसी की सज्ञा का होना
बीकानेर, जयपुर, उदयपुर आदि रियासतों में किसी ने न देखा न सुना ।
बनारसीदास जी, मेरे बाबा मजिस्ट्रेट के सरिश्तेदार के अतिरिक्त,
बाज़ार चौधरी, छाबनी कोतवाल और कमसरियेट गुमाश्ता का काम
भी करते थे। उनके हाथ के लिखे हुये फारसी भाषा में गवाहों के
बयान, अभियुक्त का स्पष्टीकरण, मुक्कदमें क्रा फैलला आदि मैंने खुद
पुराने कागज़ों में देखे हैं। वह काग़ज्ञ दिल्ली में एक लकड़ी के
बक्स में रखे ये।| श्रव उनका पता नहीं है। वनारसो दासजी चौधरी
कहलाते थे | वह गवाहों का बयान श्रौर मुक्रदमे की सब्र बातें मैजिस्ट्रोट
को समझा देते थे और मैजिस्ट्रोय की अनुमति के अनुसार फेसला लिग
देते थे। मैजिस्ट्रोटय उस पर दस्तखत कर-देता था। संक्षेपतः सारी
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