चारिका | Chharika

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Chharika by शांति प्रिय द्विवेदी - Shanti Priya Dwiwedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धम्मंचक्र-प्रवत्तत ७ पैर की तरह मेरा कटिबन्ध हुआ । सूत की तकलियों की माला-जँसा मेरा मेरुदण्ड दिखाई देने लगा । टूटे हुए मकान के बल्ले जैसे ऊपर- नीचे हो जाते हैं मेरी पसलियाँ भी वैसी ही हो गयीं । गहरे कुएँ में पड़ी हुई नक्षत्रों की परछाँई के समान मेरी आँखें धंस गयीं । कच्चे कहू को काट कर धूप में डाल देने से जैसे वह सुख जाता है बसे ही मेरे सिर की चमड़ी सूख गयी । मैं पेट पर हाथ फेरता तो रीढ़ की हड्डी मेरे हाथ में लग जाती और रीढ़ की हड्डी पर हाथ फेरता तो पेट की चमड़ी हाथ आ जाती । शौच या पेशाब के लिए बेठता तो मैं वहीं पड़ा रहता । शरीर पर हाथ फेरने पर मेरे दुबंल बाल आप ही आप नीचे गिर जाते । भिक्षुओ मल-मूत्र के कारण जैसे शरीर की उपेक्षा नहीं की जा सकती वैसे ही मनोविकारों के कारण भी इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । मल-थुद्धि की तरह मनःशुद्धि भी इसी शरीर से किया जा सकता है । यदि मल और मनोविकार न हों तो साधना की क्या आवशद्यकता भिक्षुओं ने पूछा-शरीर की रक्षा करने से क्या भौतिक सम्पत्ति का सब्चय नहीं होने लगेगा ? परिब्राजक ने कहा-जैसे शरीर में मल-सूत्र का सझ्चय करना कोई बुद्धिमान पसन्द नहीं करता वैसे ही जीवन में भौतिक सम्पत्ति का सब्चय करना भी पसन्द नहीं होना चाहिये । मल-सूत्र के सब्चय से शरीर व्याधिग्रस्त हो जाता है भौतिक सब्चय से मन विकार-ग्रस्त हो जाता है । स्वस्थ जीवन के लिए देह-शुद्धि की तरह सनःशुद्धि भी आवश्यक है । भिक्षुओं ने पूछा---मनःथुद्धि चित्त-ुद्धि कंसे की जाय? परिव्राजक ने कहा--जैसे देह-रुद्धि के लिए नियम-संयम हैं वंसे हो मनःशुद्धि के लिए भी नियम-संयम हैं । जैसे शरीर अपने सबज़्धि सज्भठन से व्यवस्थित है बसे ही मन भी सम्यक्‌ बोध से सुव्यवस्थित सुस्थिरचित्त हो सकता है। बोधिवक्ष के नीचे जब मुझे मनो-




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