पावन स्मरण | Pawan Smaran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यता खरा सोना थी। वे अरबी भाषा और साहित्य के बेजोड़ विद्वान थे। इस्लामी
धर्मग्रंथों क। उनका ज्ञान अपार था। अपने आरंभिक जीवन में वे पत्चकार थे
और कलकत्ते से उन्होंने अल हिलाल नाम का पत्र निकाला था जिसने मुसल-
मानों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्त करने में बड़ा काम किया था। वे उर्द के विद्वान
और लेखक थे। उतका उर्द-गद्य आधुनिक युग का 'टकसाली' गद्य माना जाता
था। भाषा पर तो उनका अधिकार था ही, साथ ही उनकी शैली बड़ी प्रभावोत्पा-
दक होती थी । उदू के इतने ब प्रेमी, विद्वान ओौर लेखक होते हए भौ वास्त-
विकता को स्वीकार कर उन्होंने संविधान सभा में हिंदी को भारत की राजभाषा
मान लिया था। उन्हें अपने धर्म पर अडिग आस्था थी, कितु उनमें धर्मांधता न
थी। इसी कारण वे हिंदुओं का विश्वास पा सके। यही कारण था कि कऋ्ििप्स
मिशन से कांग्रेस की ओर से वार्तालाप करने के लिए एकमात्र वे ही प्रतिनिधि चने
गये थे। स्वतंत्नता के बाद वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए और उन्हें
शिक्षा विभाग मिला । यह उनकी प्रतिभा और योग्यता का जीवित प्रमाण है कि
उनके समय में उस विभाग का काम अप्रत्याशित रूप से बढ़ा और उसका व्यय
दो करोड़ से तीस करोड़ हो गया। कांग्रेस के वे सुदृढ़ स्तंभ थे और उसकी नीति
के तिर्माण तथा निर्णयों में उनका पूरा हाथ रहता था। कांग्रेस में उनका प्रभाव
सदा रचनात्मक होता था। वे धैर्य कितु दृढ़ता से तथा उदारता से काम करना
पसंद करते थे, और वे अपने मीठे शब्दों से अधीर सुधारकों को काबू में रखते थे ।
उनके व्यक्तित्व के कारण भारत को पश्चिमी एशिया के देशों से मंत्री-संबंध
स्थापित करने में बड़ी सहायता मिली थी । उनकी शिष्टता प्राचीन युग की याद
दिलाती थी, और उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व में गौरव, गुरुता और गंभीरता
एकसाथ द्योतित थीं। वे आरंभ से ही 'राष्ट्रीय' थे और यही कारण है कि वे
केवल पंतीस वर्ष की अवस्था में कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। न तो उनके
पहले और न उनके बाद, इस छोटी अवस्था में कभी कोई व्यक्ति कांग्रेस-अध्यक्ष
की गद्दी पर बैठ सका | जितने दिनों वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, उतने अधिक दिलों
और कोई व्यक्ति उस पद पर नहीं रहा। उनसे देश के आंतरिक मामलों में तो
मार्ग-दर्शन मिलता ही था, कितु अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी उनकी सलाह बड़ी
मृल्यवान होती थी । मृत्यु के समय उनकी अवस्था केवल ६६ वर्ष की थी। उनके
निधन से देश की अपार क्षति हुई है। कितु मौलाना आजाद भारत के इतिहास
में और क्ृतज्ञ भारतीयों के हृदयों में सदेव जीवित रहेंगे ।
पवन स््मरणे / ५
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