भारतीय कहानियाँ | Bharatiy Kahaniyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharatiy Kahaniyan by श्रीनारायण चतुर्वेदी - Shreenarayan Chaturvedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीनारायण चतुर्वेदी - Shreenarayan Chaturvedi

Add Infomation AboutShreenarayan Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| १३ | (प्रचारक होने के कारण ) उसका उदेश्य ही विचारोत्तेजना उत्पन्न करना हैं। इसलिए वह उसे दोष नहीं समभेगा। कुछ कहानी-लेखक सफाई के जमादारों का काम करते है| नगर के स्वास्थ्य के लिए अवश्य ही यह आवश्यक है कि कड़ेखानों, नालियों और संडासों का निरीक्षण करके उन्हें ठीक अवस्था में रखा जाय। कितु ` यह निविवाद है कि नालियाँ और संडास आवश्यक हैं। समस्या _ केवल उनके ठीक ढंग से रखने की हू । यदि कोई कहे कि नगर में नालियाँ है---और उनका होना दुर्भाग्य है, तो लोग उससे सहमत न होंगे। उनके सुधार की योजना से बहुत से लोग सहमत हो जायँगे। जिस प्रकार शिष्ट से शिष्ट और सभ्य से सभ्य परिवार के घर में भी कुछ न कुछ कड़ा-करकट निकलता ही है, उसी प्रकार अच्छे से अच्छे समाज में कुछ न कुछ दोष रहते हैं। वे दोष अवांछनीय हो सकते हैं । वे हानिकर भी हो सकते हैं । कितु यदि हम उन पर ही जोर दें और केवल उन्हीं का वर्णन करें तो अतिशय जोर देने के कारंण पढ़नेवाले उन दोषों को अत्यधिक महत्त्व देने लगेंगे और गुणों के सामने न आने के कारण उनको यह धारणा हो सकती है कि _ चित्रित समाज बुरा हैं। कोई भी समाज निर्दोष नहीं होता। किन्तु . सामहिक रूप से गण-दोषों का लेखा-जोखा रूगाकर ही उसे. अच्छा या बरा कहु सकते ह । यदि कोई लेखक साध के दोष दिखाने पर ही तुल जाय तो वह पाठकों पर यह प्रभाव छोड सक्ता हं कि साधु व्यक्ति भी असाधु हं । कहानी मे, जहां स्थान के संकोच के कारण, केवल एक भलकमात्र दिखलाई जा सकती है वहाँ गण-दोषों का विवेचन कठिन गे जाता है। कितु यदि कोई लेखक अपने संग्रह में केवल दोषावली का ही वर्णन करता जाय तो उससे भ्रम फेल सकता है। सच्चे कलाकार जीवन के अच्छे-बरे-सभी-चित्र खींचते हं। वे दोषों को छोड नहीं देते। कितु उनमें दोषों का चित्र उचित अनपात में होता है। समाज के दोषों के चित्र को जोरदार बनाने के किए बहुधा रेखक अपनी कहानियों को दु:खान्तक बना देते हें। हिन्दी में इस समय विषाद' की धम है। कविता में भी विषाद का बोलबाला हैँ और कहानियों में भी । कहानी के साथ साथ नायक या नायिका में से एक, और कभी कभी दोनों ही, समाप्त हो जाते हैं। कोई क॒एँ में ड्ब मरती है तो कोई रेल से कट जाती है। कोई विष खा लेती है तो कोई छत पर से कद पड़ती है। यदि लेखक ने दया करके उसके प्राण छोड़ भी दिये तो उसे विधवा और अनाथ करके जीवन भर रोने के लिए छोड़ दिया जाता है। बहुत से लेखकों के अन्तःमन में अपने जीवन से निराश होने के कारण समाज से प्रतिहिंसा की जो भावना




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now