विशाखादत्त प्रणीत मुद्राराक्षस : एक आलोचनात्मक अध्ययन | Vishakhadatta Praniit Mudraraakshash : Ek Alochnatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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दिव्या द्विवेदी - Divya Dwivedi
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मृदुला त्रिपाठी - Mridula Tripathi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थी। मुद्राराक्षत मे कवि ने जिस प्रमुखता के साथ इन जातियो का वर्णन सेना
के प्रमुख अड्भ के रूप में किया है इससे यह परिलक्षित होता है कि कवि इनके
सैन्य गुणों से पूर्ण परिचित था। यह तभी सम्भव है जब वह इनके पास पडोस
का रहने वाला हो ।
मुद्राराक्षस की कथावस्तु को प्रस्तुत करने के लिए कवि ने वैदभी रीति
का आश्रय न लेकर विषय वस्तु के अनुकूल गौडी रीति का आश्रय लिया है।
गौडी रीति में ओजोव्यग्जक वर्णो का प्रयोग होता है। प्रत्येक वर्ग के प्रथम वर्ण
का द्वितीय वर्ण के साथ तथा तृतीय वर्ण का चतुर्थ वर्ण के व्यवधान रहित योग
होने पर, र' का हल् वर्णों के साथ योग होने पर, समान वर्णों का योग होने
पर, ण को छोडकर टवर्ग का प्रयोग होने पर शकार एवं षकार का प्रयोग
होने पर तथा दीर्घ समास का प्रयोग होने पर ओज की अभिव्यक्ति होती है।
इस प्रकार के वर्णो के प्रयोग में वामन के मत में गौडी रीति होती है।
जबकि आदि आचार्यों के मत में यही परुषा वृत्ति है। गौडी रीति गौड
देशवासियों में अधिक प्रिय है। इसीलिए इस रीति का नाम गौडी प्रयुक्तं होने
लगा। विशाखदत्त द्वारा गौडी रीति का आश्रय लेने से यह सिद्ध होता है कि
इनका निवास स्थान पूर्वी बिहार अथवा बंगाल के पश्चिमी भूभाग में कहीं रहा
होगा
नाटककार विशाखदत्त ने मुद्रारक्षस के तृतीय अङ्कु मे शरद् ऋतु के
सौन्दर्य का वर्णन करने के लिए काशकुसुमो तथा राजहंसो का उल्लेख किया
है'। काशपुष्प तथा राजहंस अधिकांशतः उत्तर भारत की नदियों के ही
योग आद्यततीयाभ्यामन्त्ययो रेण तुल्ययो ।
टादि शषौ वृ्तिदैध्यं गुम्फ उद्धत ओजसि।। ,
वर्गप्रथमतुतीभ्यामन्त्ययो द्ितीयचतुर्थयो रेफेण अध उपरि उभयत्र वा यस्य
कस्यचित् तुल्ययोस्तेन तस्यैव
सम्बन्ध , टवर्गोऽर्थात् णकारवर्ज , लञकारषकारौ, दीर्घसमास,
विकटा सद्चटना ओजस । काव्यप्रकाश ८८९९ पु० ३९४
आकाशं काशपुष्पच्छविमभिवता भस्मना शुक्लयन्ती.
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