नारी - जीवन | Nari -jivan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय नारी ] [६
दूषित रहा । जहा दो चार वर्षों की उम्रवाली कन्याश्रो के विवाह
होने लगे, वहा श्राठ-दस वष की उम्र वाली विधवाशों की कमी
न रही । जिस श्रवस्था मे वे दूधमु हो भ्रवोध बालिकाएं सरलता-
वश विवाह को समझती भी नहीं, उसी उम्र मे उनका विधवा हो
जाना कितेना दयनीय होगा !
ऐसी परिस्थितियों मे प्राजन्म ब्रह्यचयं पालन भी श्रसम्भव
है । ब्रह्म च्य कोई जबरदस्ती की वस्तु नहीं | मानव सुलभ भाव-
नश्रो को तो नही दवाया जा सकता । जहा बडे भारी तपस्वी
सदाचारी विश्वामित्र भो मेनका के समक्ष कामवासना को वश मे
ना कर सके, वहा इन भोली-भाली कन्याओ से क्या श्राणा कौ
जा सकती है कि वे श्रपने सदाचरण द्वारा अपने हृदय को पवित्र
व निष्कलक रख सकं । परिणामस्वरूपःसमाजमे दुराचार वं
वेश्यावृत्ति बस्ने लगी । भ्राध्िक विषमता मी इसमे काफी घहा-
यक रही ।
पहिले जत्र स्त्रिया सुशिक्षित तथा सुसस्ृत थी, वे विवा-
हित जीवन तथा पतित्रत के आदर्श को समक कर उसके प्रननुसार
झ्राचरण करने का पूर्णो प्रयत्त करती थी । उसी के फल-स्वरूप
पति को मृत्यु के उपरात अपने जीवित रहने की भ्रपेक्षा मृत्यु का
भ्रालिगन श्रधिक उपयुक्त सम कर श्रपते आपको श्रग्नि मे जला
कर भस्म कर देती यी । यद्यपि यहु धारणाया प्रथा घोर भ्रज्ञान
का ही फल थी, मगर वित्कूल स्वेच्छासे थी । क्रिसी भी प्रकार
की जवदंस्ती इस सम्बन्व मे करना प्रनुचित तमा जाता था ।
क्योकि जवर्देस्ती किसो स्त्री को जल मरने के लिए बाध्य करना
मानवहिसा से किसी भी हुलत मे कम न था । पर घीरे-धीरे
लोग पाशविक्ता कौ सीमा का भी उल्लघन कर बैठे । पति की
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