शतकचुरिन व्याख्या (१९७४ ) | Shatak Churni Vyakhaya (1974) Ac 4976

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) सूत्रों की रचत्रा न करते तो बहुत तम्मत्र है ऋषायपाण्दु का भ्रर्थ ही स्पष्ट नहीं हो पाता । आचार्य यतितृषभ चूर्शि सूत्रों के प्रथण रचयिता थे इसलिए उनका भी वही महत्व है जितना घदुलंडागम के रचयिता भ्राचार्य भूतत्लि पुष्पदन्त का । वैते भ्रावायं वीरमेन ने तो बट्खण्डागम के सूत्रों को भी चूणिसूत्र कहा है इसी तरह वेदना खण्ड में जो व्याख्यान रूप गाभायें हैं घवलाकार ने उन्हें चूशि सूत्र कहा है। आचार्य यतिवृषभ के पश्चात्‌ होने वाले चूरि सूत्रकारों में उच्चारणा- चाय हुए। उत्होंते मौलिक रूप से चली झ्रायी श्र तपरम्परा को शुद्ध उच्चरित' कूप बनाये रखने के लिए उच्चारण की शुद्धता पर विशेष जोर दिया। यद्यपि यतिवृषभ एवं उच्चारणाचार्य के विषय निरूपण मे यत्र तत्र॒ विभिन्नता दिखलाई पड़ती है लेकिन पर्याधारथिक नय और द्रव्याथिक नय की प्रपेक्षा से विचार करने में उसमें कोई ग्रन्तर नहीं आता । उच्चारणाचार्य का समय द्वितीय शताब्दी का अन्तिम पाद एवं तृतीय शताब्दी का प्रथम पाद माना जाता है । प्रस्तुत शतक चूरणि के रचयिता आचार्येवयं शिवशर्भा रहँ जिनका उल्नेख चूरिकार ने प्रारम्भ में किया है। चूरिकार ने उनके प्रति श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए लिखा है कि शब्द, तकं, व्याकरण, एवं कर्म सिद्धान्त के জানন वाले, अनेकवाद मे विजय प्राप्त करने वाले द्वारा यह शतक ग्रन्थ लिखा गया है । प्रस्तुत भराचायं शिवशर्मा कब हुए, उनको भ्रन्य कृतियां प्रौर कौन-कौन सी हैं तथा उनके गुरु का नाम क्‍या था इसके विषय में यह शतक चूरि मौन है। हवेताम्बर साहित्य में चतुरंगीय नामक तृतीय अध्ययन की वृत्ति में आवश्यक ঘা, वाचक (सिद्धसेन) और शिवशर्मा का उल्लेख हुआ है । शिवशर्मा का “जोगा पयडि पएस ठिति अजुभागं” गाथा कौ प्रथम पंक्ति भी उद्धूत की गयी है। उनके झनुसार शिवशर्मा ११ वीं शताब्दी के विद्वान्‌ थे । लेकिन शतक चूरि के रचयिता प्राचार्य शिवशर्मा दिगम्बर जैनाचार्य दे ऐसा उनके इस ग्रन्थ से स्पष्ट पता लगता हैं। उनका समय भी ११वों शताब्दी से पूर्व का ही होना चाहिए । क्योकि चिकार ने जिन प्राकृत गाधाप्ों. को उद्ध,त की है वे भाचाय॑ नेमिचन्द्र के ग्रन्यों की गाथाएं हैं। इस शतक प्रन्य पद जिस आचार्य ने चूरि। लिखी, उसके बारे में भी स्वयं चूणिकार मौन दहै। `




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