हिंदी काव्य - धारा | Hindi Kavya Dhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.73 MB
कुल पष्ठ :
560
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न प्र न खेट श्र पटनाके राजमहलोमे विलासी भोजन वौकीनीके वस्त्र सुगणित द्रव्य- पर कितना ख़चं होता रहा होगा । प्रजाकी मेहनतकी कमाईसे उपार्जित यह महाघं वस्तुएं चार-पॉच दिनमें ही खतम हो जानेवाली थी । इनके श्रतिरिवति भी सामन्तोके भारी खचं थे ।--नये-तये महल क्रीडा-उपवनत सिहासन राज- पलंग मोरछल नमर प्ौर लाखोके हीरा-मोत्ती-महार्घ-रत्नोके श्राभूपण राज- महलोकी सजावट चित्र-कला क्रीडामुग सोनेके पीजडोमे बन्द शुक-सारिका लोहेके पीजडोमे बन्द केसरी । दूर-दूर देशोसे लाई कितनी ही दुलेंभ महाघं- वस्तुम्नोके सचयमे भी देशकी सम्पत्तिका भारी भाग ख़चे होता था । फिर सामन्त या राजा झ्रकेले ही उस सम्पत्तिकों स्वाहा नहीं करते थे । उस समयके राजाश्रोके आदर्श थे--कृष्ण श्रौर दणरथ तथा उनकी सोलहु-मोलह हजार रानियाँ । ये रानियाँ मोटा-कोटा कपड़ा पहन रूखा-सूखा खाकर दिन काटनेके लिए रनिवासमें नहीं रखी जाती थी । इन हजारों रानियो श्र उसीके भ्रमुसार उनके पुन्नो-पुनियो बहुप्नो-दामादोका खर्च भी देवकी उसी सुम्पत्तिके मत्थे था । राजवणके सतिरिक्त कितने ही राज-च्युत भगोडे राजवणी भी प्रजाकी गाढी कमाईम श्राग लगानेके श्रधिकारी थे । उस वक्त उन्छेद ्रक्सर होता रहता था फिर वे श्रपने सम्बन्धियीके पास कन्नौजरों सिहल तकका काटते रहते थे । इनके म्रतिरिकत राज-दरवारोंगे कलाकार कंवि सगीतज्ञ चिश्रकार मूत्तिकार ही नही बहुत काफी संख्या विद्ूपको चापलूसो मसखरों झादिकी भी होती थी । इन श्रमीरोकी सेवाका काम सिंफ़ें वेतन-भोगी चाकर-चाकरानियोसे नहीं चलता था उनकी सेवाके लिए काफी सख्या दास-दासियोंकी होती थी । इसके बाद शिकार या किसी दूसरे सनोविनोदके लिए जिधर भी उनकी सबारी जाती उधरके किसान कमकर श्रौर कारीगर श्रपने धन-उत्पादनके कामकों छोड़ बेगारमे पकड़े जानेके लिए मजबूर होते 1 ९ पुरोहित सहंथ--राजा श्रपने प्रौर श्रपने लग्गू-भग्गुशोपर कितनी सम्पत्ति स्वाहा करते थे इसका थोड़ा-सा श्रन्दाजा ऊपरके वर्णतसे लग गया
User Reviews
No Reviews | Add Yours...