प्रौढ़ रचनानुवादकौमुदी | Praod Rachananuwadkomudi

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Praod Rachananuwadkomudi by कपिलदेव द्विवेदी - Kapildev Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ १६ ) (११) व्याकरण-शान के लिए अनिवार्य १६५ छन्दो का হলে पारिसमापिक- आव्दकोछ अकारादि-क्रम से परिददेष्ट में दिया गया है 1 (१२) अल्युपयोगी २० विषयो पर भीढ सस्छृतत मे निवन्ध दिष्ट ग्ट हैं | (२१) भत्येक अभ्यास मे व्याकरण के कुछ विच्चे नियर्मो का अभ्याख कराया गया है और अनुवादार्थ अत्युपयोगी खक्त दिए गिष्ट ई । (९५४) परिदिष्ट के अन्त मे दत्‌ दिन्दी-मस्करत-शब्दकोप भी दिया गया है । कृ तज्ञता-प्रकखन इस पुस्तक के रेखन मे मुझे जिन भमहानुमावों से विशेष आवश्यक परामर्श, प्रेरणा और प्रोत्ताइन मिला है, उनमें विशेष उल्लेखनीय ये ह । मैं इनका कतश हूँ । सर्वेश्री राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र असाद, डॉ० सम्पूर्णानन्द, डोॉ० ज० फि० बलूवीर (पेरिस), प० छेदीप्रसाद व्याकरणाचा्यं (गुख्कुक म० वि० ज्वालापुर), स्वामी अग्रतानन्द खरस्वती (रामगद, नैनीताछ), डॉ० हरिदत्त शाझ(त्री ससततीर्थ (कानपुर), अआमती ओमझान्ति द्विवेदी, भी पुरुषोत्तमदास मोदी 1 अन्त में विछज्जन से निवेदन है कि वे पुस्तक के विषय में जो भीं सश्योधन, परिवर्तेन, परिवर्धन आदि का विचार मेजेंगे, वह बहुत कृतश्तापूर्वक स्वीकार किया जायगा | चन কাথিভঈ তিন चतुर्थ संस्करण की भूमिका सस्छत प्रेमी शिक्षकों और छात्रों ने इस पुस्तक का जो हार्दिक' स्वागत किया है, तदर्थ उनका अत्यन्त कृतश हैँ । उत्तर भारत के आायश् सभी विश्वविद्यार्च्या ने इसको अपने पाठ्यक्रम में स्थान दिया है, तदर्थ उनका आनुणद्दीत हूँ । जिन बिद्धार्नो ने आवश्ष्यक सशोघनादि के विचार भेजे हैं, उनको विद्येष धन्यवाद देता हूँ । उनके सद्योधनादि के विवासो का यथाखम्भव पूर्णं पाल्न किया गया है । पुस्तक को विद्येघ उपयोगी बनाने के किष्ट इस खर्करण मे ३२ पृष्ठ जर बडढाष्ट गष्ट है । १०० আনু के क्त आदिः प्त्यर्यो खे बने रूपों की सारणी दी गयी है । वाक्यार्थं मे प्रयुक्त होनेवारे श्न्दो का प्क सग्रह दिया गया है। १० निबन्धो को विस्तृत करके समस्त उद्धरणों को पूर्णं किया गया है तथा परिवर्धित रूपे लिखा गया है। यथास्यान जावच्यक समी परिवर्तन, परिवर्धन और सद्योधनादि किए गए हैं । आशा है अस्घ॒त सस्करण छात्रों के किए. विशेष उपयोगी सिद्ध होगा । गवर्नमेण्ट काडेज, ज्ञानपुर कपिख्देव छिचेदी ताऽ २-९-७द ई० श्र




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