नई तालीम वॉल-11 वर्ष -11 अंक-1 | Nai Talim vol-11 Varsh-11 Ank-1

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Nai Talim vol-11 Varsh-11 Ank-1 by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ व नयी तारीम পপ ~~~ ~~~ -~-~-~ ---- ---~------- ~ कर्ता मे व्यवितत्य यो उपर छे जातैवाते हैं. ऐडि उस मोद़ि वो समरशता पर हम अमो विवार गद्ना व रहे हैँ । वेतन पैदे पर भो वायत्र्ता या इतना ध्यानता रा ही घाहिये हि अगर गाँव में बोई प्रामरोष, ताल्ाडिब या स्थायी, बाता है. तो वह অথ নাণহিয়া यी ही तरह उसमें शरीर हो, पजूगो न दियाये। जहाँ ता আমন হী তই अपने वा गाँव वा एवं उद्ूद्ध 'नागसिि! मानना चाहिए और उसी तरह आवरण करा घाहिए। ३३ गाँव वो गाँव बनाने थी के सीढ़ियाँ मानो जा सबती हैं । प्रवेश इतनी तैयारी वे साथ गाँव ये जोवन में प्रवेश शुरू होगा है। गाँव में पहुंचते हो दडी समा आदि परते का आग्रह ঘোনা तर नदी है । हमें यह मानना चाहिये कि सपक पौ वाई परिवाद दै नबि गौय । धनी, गरीय যা जाएि आदि के भेद भाव को भूठकर क्षेत्र के एक परिवार से घना सपर्क साधवा चाहिये। सपर्क वे तीन साधव हो सकते है ( के ) बच्चो फे साथ खेल (सर) सुवको के साथ श्रम, (गे) दृद्धा के साथ गप । गाँव के ऐसे गृहस्थी के खेत पर सुबह दो घटा काम कया जा सकता है णो मच्छा खेती में रुचि रखते हों और हमारे साथ मलकर खुद महवत करने को तयार हो । इस तरह के सपर्क से कुछ दिन बाद अपनेजआप गाँव में ग्राम भावना रखनवाली एक टीम वने जायगी जो सोचन लगगी कि गौव के लिये कुछ किया जाय । अत में श्रम की तिरादरी में से गाँव का नया नवृत्व निकलेगा । नया नतेत्व बताता और पुराने नतृत्व को मिछाना, थे दोनो प्रक्रियाएँ साथन्साथ चलनो चार्य छेक्नि अप्रत्यद्षा रूप से, महीं तो वायकर्ता अनावश्यक विरीध के दरूदल म फेस जायगा ! जैसा पहले कहा है. सभा करने को जल्दो नहीं करनी चाहिये । अलग अल्ग परिवारो कं दरवाजा पर + बंटवे-बैंडते अपने-आप “परिवार गोष्ठो' के थाद তিল प्रोष्टो' था नंदर आ जायगा। और णव गाँव दे सब टोटो मे गोप्ठियाँ हो चुरेंगी ती स्वथ अरग-्बरटय दोला वे दो चार अपुल व्यक्ति 'गाँव की समा! बुखायेंगे 1 इस तरह वा व्रम हर गाँव में चछ घुरे तो क्षेत्रीय লা युछानी चाहिये । १४ हमारा घ्यात मुख्य रुप से गाँव के जोवत मे तीन पहलुओं यो ओर जाना घाहिये ( व ) अशाति निवारणं-ऑतरिव झगड़े, बाह्य उपद्व। ( स ) उत्पादन-यूद्ि--पाद, सेनी, षाद । (गे ) उल्वार झिलण--्वाहन्समा, से ठ, पव, उत्सव । १५ इतना हो चुकने पर गाँव में पुरुषार्थ-स्वाव লবন के क्षण प्रकट होने लगेंगे । पृष्पार्य सही दिशा में जाय पगमे लिमे नीचे ठिखी बार्तें मुझायों जा सकती हैं ( १) धर्मगोछा या प्रामोकोप । (२) निन च॑रघ्ट परिवारतेरमे वि्चीप स्ामीप्यहो उनमें पच सहकार, जैसे--प्रमन्यह्क्ार, उद्योग सहक्ार, शिसण-सहकार, *वाय-सहुकार, मत्रणा-सहकार । इस तरह को सहकारी इकाई वनने के लिये किप्ती बाजाब्दा सहवारी रामिति क्री जरूरत नहों है। प्राम स्वराज्य को भूमिका में हमेशा कोशिश इस बात वी होनी चाहिये कि जीवन की जो भी परिस्थिति आज है उसीमें से सहकार प्रकट हो ॥ जिन परिवारों में सहज सामीप्य हो, व एक-दूसरे के खेत पर धाम करें जो शिक्षित हैं थे अ इक्षित को पढा दे, जो चरला चाना जानता हौ वह न जाननेवाले को बता दे आपस में कोई विवाद हो ता आपस में हो तय कर लें. पचायत के सामन मुकदमा लेकर न जाये तथा घर-गृहस्थी ऐेतो-बारी भादि के बारे मे आपस में सलाह करके काम बरें । धीरे धोरे सहयोग को परियि ओर सहयो ते परि वारो की सध्या बढगो । विराधों के बावजूद सहमति और सहयोग वे! क्षेत्र चढाते जाता हृल्‍्यश्यरिवर्तन की अक्रिया है और यही हमार छोक थिक्षण को कसौटी भो है। (३ )ग्राम शाछा--युत्त य! रात शन इमे रायता गाव के शिरि युवका का सहयोग ले सकता हैं।




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