दीपा का प्रेम | Deepa Ka Prem
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.48 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नगा था. चह देखने में खूबसूरत था था मेहनती भी चहुत धा इसीलिए तड़ कमाता भी अच्छा था थोड़े बहुत पैसे भी उसने बना लिये थे लेकिन उसे कोई लड़की पसंद नहीं आती थी । उसकी दो शादियां हो चुकी थीं-उन्हें वह छोड़ भी चुका था। इस वक्त चह अकेला था। वह शहर अपने लिए लड़की देखने ही गया था। तभी अपने रिश्तेदार वंशीवदन की औरत पर उसकी नजर पड़ी । उसे चह पसंद आ गयी । शहर की लड़की उसे अच्छी लगते हुए भी मनलायक नहीं लगी थी । उनसे सोचकर देखने की मोहलत लेकर लौटते समय वह फिर वंशीवदन के यहां चला गया। यहां वंशीवदन के साथ रिश्ते के अलावा मिता-मितानी का अलग रिश्ता नौडकर वह घर लौटा था । वंशी के हाथ से पान लेकर घनश्याम ने कहा था-तुम्हारे साथ पान का संवंध किया भाई तुम मेरे पान हो और भाई मैं तुम्हारा सिगरेट हू यह लो-पिंयो । इसके वाद उसने जेव से एक डिविया निकालकर कहा भाई इसमें जर्दा है। आधा तुम रख लो। अपनी औरत को दो । वह तो सिंगरेट नहीं वनेगी । वह जर्दा बनेगी यह वात बंशी की मां को अच्छी नहीं लगी थी । उसे इसमें शुरू से ही खोट नजर आ रहा था । इस तरह से जबर्दस्ती । दोस्ती वढ़ाना मित्तवा-मिताई का संबंध स्थापित करना । इन सबके पीछे उसकी नीयत साफ नजर नहीं आ रही थी-खाने की थाली में साग के नीचे छिपायी मछली की गंध की तरह । नहीं नहीं यह ठीक गहीं । वंशी हंसने लगा । बोला वह आज आया है कल चला जायेगा । इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है । गीता की यह सब अच्छा लगा था या बुरा कहना मुश्किल हैं। उसने वस अपना घूंघट थोड़ा और खींच लिया था | वह घूंघर उसने अभी तक कम नहीं किया था | लेकिन बीच-बीच में घूंघट की आइ से वह देखती घनश्याम उसी पर नजरें गड़ाये हुए है। वह भी उसकी ओर टकरटकी लगाकर देखती । उसकी पतकें तक नहीं गिस्ती थीं । सिफ पलकें ही नही बल्कि उसका सारा शरीर एकदम अचल हो जाता था। बह खड़ी हो जाती थी | या उसकी ओर देखकर चलते चक््त अचानक ठोकर लगने से चौंक पड़ती थी । आह करके वह बैठकर अपनी अंगुली सहलाने लगती थी । उसका अंगूठा पत्थर या लकड़ी की चौख़ट या दूसरी किसी चीज से लगाकर कट जाता था । इसी घनश्याम ने उससे सांगा की बात की थी। कुछ दिन पहले ही । उसने कहा था कि बह दुलू को अपनी लड़की जैसा मानेगा । अपने बेटे-बेटियों से वह ज्यादा प्यार करेगा । वह मंदिर में भगवान् के सामने कसम खाकर कह सकता है कि एक पेसा कमाने पर वह उससे पहले ढुलू के लिए दूध खरीदेगा दो पैसा कमायेगा तो एक पेंसे में ढुलू के लिए दूध और दूसरे से गीता के भात का चावल खरीदेगा । तीसरा शंकरीतला के जंगल में 17
User Reviews
No Reviews | Add Yours...