श्री दशवैकालिक सूत्र | Shri Dashavaikalik Sutr

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Shri Dashavaikalik Sutr by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना - पं० हीरालाल जी शास्त्री आगमो के सम्बन्ध में एवेताम्बर-परम्परा मे दो माग्यताएं प्रचलित है- ष्वेताम्बर मुतिपुजक-परम्परा- ११ गङ्ख, १२ उपांश, ४ मल. २ चूलिका- सूत्र, ६ छेद सूत्र और १० प्रकीणेक-यों ४५ आगम मनती है। श्वेताम्बर स्थानकवासी व तेरापथौ-परम्परा ११ अग, १२ उपाग, ४ मूल, ४ छेद, १ आवश्यकं यों ३२ आर्मो को प्रमाणभूत मानती है । दशवेकालिक-- ४ मूल आगमों में उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नंदीसूत्र व अनुयोगद्वार आते हैं। दशवैकालिक क्री संरचना आये शय्यंभव ने वी है और यह श्वेताम्बर-परम्परा का आचारविषयक अत्यन्त उपयोगी तथा महत्वपूर्ण संकलन है । इसके आज तक अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं जो प्राकृत-संस्कृत टीकाओं तथा हिन्दी अर्थ॑-विशेषाथं क साथ है 1 इनमे विशालकाय संस्करणों से लेकर मूलमात्र के लघु संस्करण भी सम्मिलित हैं । यह सूत्र जैन-परम्परा में सर्वाधिक प्रचलित है और प्रायः सभी साधु-साध्वी एवं अनेक ॒वैरागीजन दीक्षित होने के पूवं या पश्चात्‌ इसको पकर वण्ठस्थ रखते हैँ एवं तदनुसार चलने का प्रयत्न करते हैँ । निर्माण-कालसे शी यहं साधुजनो का सम्मान्य एवं अत्यन्त प्रिय ग्रन्थ रहा है । रचनाकाल के पश्चात्‌ इस पर अनेक चूणियां, टीकाएँ, टव्वा और टिप्पण लिखे गये हैं । उनमें से कुछ का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है- ६. नियुक्ति- भद्रवाहू द्वितीय ने दशवंकालिक पर सवंप्रथय निगुक्ति लिखी । यह्‌ पद्यात्मक ह्‌ भौर इसकी गाथाओं करा परिमाण ३७२ है। इसका रचना-काल विक्रम की पांचवी-छटी शताब्दी है । २. भाष्य - यह पद्यात्मक व्याख्या है । उसकी भाष्य-गाथाए केवल ६३ है । चणिक।र अगस्त्य सिह ने अपनी चूणि मे इसका कोई उल्लेख नहीं किया है। पर टीकाकार हरिभद्रसूरि ने भाष्य गौर भाष्यकार का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया है। अत: इसकी रचना नियुक्तिकार के बाद और चूणिकारके पूवं हुई है।




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