श्री दशवैकालिक सूत्र | Shri Dashavaikalik Sutr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
- पं० हीरालाल जी शास्त्री
आगमो के सम्बन्ध में एवेताम्बर-परम्परा मे दो माग्यताएं प्रचलित है-
ष्वेताम्बर मुतिपुजक-परम्परा- ११ गङ्ख, १२ उपांश, ४ मल. २ चूलिका-
सूत्र, ६ छेद सूत्र और १० प्रकीणेक-यों ४५ आगम मनती है।
श्वेताम्बर स्थानकवासी व तेरापथौ-परम्परा ११ अग, १२ उपाग, ४ मूल,
४ छेद, १ आवश्यकं यों ३२ आर्मो को प्रमाणभूत मानती है ।
दशवेकालिक-- ४ मूल आगमों में उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नंदीसूत्र व
अनुयोगद्वार आते हैं। दशवैकालिक क्री संरचना आये शय्यंभव ने वी है और यह
श्वेताम्बर-परम्परा का आचारविषयक अत्यन्त उपयोगी तथा महत्वपूर्ण संकलन है ।
इसके आज तक अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं जो प्राकृत-संस्कृत टीकाओं तथा
हिन्दी अर्थ॑-विशेषाथं क साथ है 1 इनमे विशालकाय संस्करणों से लेकर मूलमात्र के
लघु संस्करण भी सम्मिलित हैं । यह सूत्र जैन-परम्परा में सर्वाधिक प्रचलित है और
प्रायः सभी साधु-साध्वी एवं अनेक ॒वैरागीजन दीक्षित होने के पूवं या पश्चात् इसको
पकर वण्ठस्थ रखते हैँ एवं तदनुसार चलने का प्रयत्न करते हैँ । निर्माण-कालसे
शी यहं साधुजनो का सम्मान्य एवं अत्यन्त प्रिय ग्रन्थ रहा है । रचनाकाल के पश्चात्
इस पर अनेक चूणियां, टीकाएँ, टव्वा और टिप्पण लिखे गये हैं । उनमें से कुछ का
संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
६. नियुक्ति- भद्रवाहू द्वितीय ने दशवंकालिक पर सवंप्रथय निगुक्ति लिखी ।
यह् पद्यात्मक ह् भौर इसकी गाथाओं करा परिमाण ३७२ है। इसका रचना-काल
विक्रम की पांचवी-छटी शताब्दी है ।
२. भाष्य - यह पद्यात्मक व्याख्या है । उसकी भाष्य-गाथाए केवल ६३ है ।
चणिक।र अगस्त्य सिह ने अपनी चूणि मे इसका कोई उल्लेख नहीं किया है। पर
टीकाकार हरिभद्रसूरि ने भाष्य गौर भाष्यकार का अनेक स्थलों पर उल्लेख
किया है। अत: इसकी रचना नियुक्तिकार के बाद और चूणिकारके पूवं हुई है।
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