मोहनी रामायण ( लवकुश युद्ध ) | Mohani Ramayan ( Lavkush Yuddha )
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.99 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नस
दे कर
मोहनी रामायण युद्ध । [ १५
खेल घाण वाण से, झणेक . मांही फारे दें।
दे फटाय घानरन फो,घान रेश डाटे. हें
५
दोहा ।
र्पिधार बारे में, घानर.... गये. . पढाय।
यों मनोध बल एय्प के, निस्सशय मिट जाय ॥
छच ने कार प्ोध वाण सारे, फद फार चीर महि डारे हैँ।
सास समर गति पुआ, रण जोधघा लड़ कर रारे हैं ॥
फर युद्ध चिपम सम्ाम जोत, थ. पि सेन जीत कर घाये दे ।
फिर भरत चहदां से चले तभी, सम्ाम भूमि में जाये दूं ॥
'लखदशा सेन की खिफल भरत, भंगदू दडुमान हैं
राज ब्ोइ ऐसे बचन खुनाते है ॥
( का बंद्रों को समभाना )
है घीरों ये- तो - बड़े प्रवल, दोउ चालन्त वीर दिखाते दद ।
इन दोनों छेड बांध जाय, घस येद्दी करना चाहत हू ॥
सुन फर ये बात फो, अंगद लड़ने को घाये हूं!
रण भूमी में रण धघीर वार, कुद्य भगद से चतराये द ॥
( चुश झंगद संवाद ,) दोहा ।
हे शंगद तोहि ठाज़ नहि, करत युद्ध व्यापार!
जिस ने मारा पितु बना, उस का सेवा कार ॥
मस्वाय पिठु अपने को तू, माता को पराये घरम कर ।
|. साया है छाज छोड़ लड़ने; घिककार चीर जा झ्बके मरा
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