हिंदी निबंध | Hindi Nibandh

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Hindi Nibandh by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निबन्ध की परिभाषा और विकास 2३ शीट ई1४0 ५६54००४ हृदय के उद्बार होते है निवन्ध हतके-फुरके हास्य- ब्यंग विच्छित्ति से शोभित बातचीत के तौर पर होते हे । गद्यकाब्य से हास्य प्रायः रसापक्षक साना जाता है । गद्यकाब्य व्यक्तिगत पत्र की सोति अत्यन्त आत्म- निष्ठ साहित्य-प्रकार है । परन्तु निवन्ध अधिक चस्तुनिष्ठ लेखन है निबन्ध श्रोर गहप से भी बढ़ा झन्तर है । गतप में किसी घटना चाता- चरण चरित्र या उद्देश्य-विशेष की सौलिक अन्विति अपेक्षित होंती हे । निवन्ध में बेसा बन्घधन नहीं है। निवन्ध से सन की सुक्त भट्कन होने से यह छूट है कि लेखक किसी सुनियोजित डिजाइन से न दिखे । निवन्ध से बतकही है पर झ्राख्यायिका नहीं यद्यपि झाइुनिक कथा से कथानक कस-कस होकर संज्ञा-प्रवाद का चित्रण तथा उसके द्वारा स्वभाव-रेखा या चरिन्र-चित्रण-प्रधान हो गया है । इसलिए बहुत बार यह श्राचुनिकतस नवकथा निबन्ध के बहुत निकुट का साहित्य-प्रकार जान पडती है परन्तु फिर भी दोनों साहित्य-प्रकारो से पाठका की शपेक्षाए बहुत भिन्न होती है । कथा पढ़कर पाठक को जो भावात्सक दृप्ति होती हे उसकी तुलना में निबन्घ से होने वाली वैचारिक संतुष्टि भिन्न प्रकार की है । एक कारण यह भी हो सकता है कि कहानी मे जो तटस्थता झपेक्षित है या उसमे जिस प्रकार को बस्तुनिष्ठ दृष्टि कहानीकार की होती है चेसी बात निवल्घकार के लिए सम्भव नहीं । निबन्ध का गहरी सैयक्तिकता थ्रौर झ्ात्सनिष्ठता से सम्बन्ध है । यदि किसी रूखे विषय पर व्यवस्थित तखमीने बनाकर बाद-विवाद्युक्त खगडन-मर्डनात्सक तक प्रस्तुत किये जायें तो बह निबन्ध की कोटि मे शायद ही आ सके यानी बह श्ात्स-निबन्ध या ललित निवन्ध न रइकर एक प्रकार का परीक्षा मे लिखा जाने वाला प्रश्नोत्तर-प्रबन्घ हो जायगा । चह एक रचनात्सक साहित्य-प्रकार नहीं रहेगा इस दृष्टि से गत्प में किये जाने वाले प्राकृतिक या बाह्य वस्तुझों के वणनों से निबन्ध के चणुन लॉलनीय हैं । गदपकार जब घुनाव करता हैं तो उसका उददश्य स्पष्ट द कहानी के देतु या अन्तिस परिणाम को परिपुष्ट करना । वह यह सब वणन सिफ सिचे ससाजे की तरह साधन के रूप से काम में लाता है साध्य उसका झुछ झर हैं । निबन्घकार का लच्य इस तुलना में बहुत भिन्न हैं । गरुपकार की तरह बह झपने-आपको भूलकर पूरी तरह अपने पात्रों मे खो जाय एसा सम्गव नहीं हो सकता । निवन्धकार की सबसे बढी कठिनाई या विशेषता यही है कि बह झपने-झापको पूरी तरह भुला ही नहीं सकता । सबेत्र सब दिषयों में सब समय बह अपने-सापको साथ लिये चलता है । यह लेखक का निजत्व बहुत प्रधान है । युलाबराय ने अपने काव्य के रूप में पृष्ठ २३४




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