जैन धर्म पर लोकमत | Jain Dharma Par Lokmat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` { १५ ] विद्वान शकर ने इस सिद्धान्त के प्रति अन्याय किया है। यह - স্থান भन्य योग्यता पाले पुरुषों में क्षम्य दो सकती थीं, किन्तु यदि मुझे ऋददनेका अधिकार है त्तो में भारत के इस भद्दान्‌ विंद्वावकी सर्वथा अक्षम्य ही कहँगा, य्पि में इस मह॒बि को अतीव आदर की दृष्टि से देखता हू । ऐसा जान पढ़ता है कि उन्होंने इस घमम के ( जिसके लिये अनादरसे विवसन-समय-अर्थात नग्न लोगोंका सिद्धान्त ऐसा नाम वे रखते हैं ) 'दइशंन-शास्त्र के भलप्रन्थों के अध्ययन की परवाह न की 1 -“प्रो० फरणिमूषण अधिकारी, अध्यक्ष दर्शनशास्तर काशीं हिन्दू विश्वविधोढय जेन शिव्पकला इजिप्ट के बाहर कहीं भी इतनी विद्ञाल और भन्य भति ( भगवान गोम्परेखर बाहुवली कौ ६० फीट ऊंची मूति मंसूर राज्य मे है जिस पथेत प्र मृति विराजमान है वह भूतु से ४७०» फीट तथा समुद्रतेकं ই ३३४० फीट ऊंचाई पर है। पर्वत का व्यास ९ .फर्वहिके लगभगहै ' तथा पहाड़ पर चढ़ने के लिये ५०० सीढ़िया पहाढ़ में ही उत्कीभं है) नदीं है। वहां भी ऐसी कोई मूति शात नहीं है जो इस मूंति के हारा 'अददित पूर्ण कछा तथा ऊ चाई में आगे बढ़ सके । --फरम्यूसन, शिल्प शास्त्री भारत॑प॑प॑ के मन्दिरों में यद्द ( आबू पवेत पर अवध्यित जैन मदिर ) ओष्ठ है यह बात निविवाद है । ताजमहल के सिवाय कोई और भवन 'उसकी समता नहीं कर सकता है । इसका चित्र तेयार करने में लेखनी थक जाती दे । अत्यन्त श्रमशील चित्रकार की कलम को भी इसमे मदान श्रम पढ़ेगा। इन मन्दिरों में जैनधर्मकी कथाएं चित्रित की गंदे हैं। व्यापार, समुद्र यात्रा, रणक्षेत्र आदि के भी चित्र विद्यमान हैं । दे ५ ॥ -- कनेर रौ




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