सोमनाथ महालय एतिहासिक उपन्यास | Somnath Mahalay Etihasik Upnyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निर्भात् उन्होंने उस रूपसी बाला की भलक देख सौ । पहले भाँदो हो भाँढो मैं ८०६ मन्त्रणा की, फिर उनमें से एक ने पूछा-- गकहाँ से था रहे हो जवात पुष्हें वया” युवक इतना कह, मुंह फेरझूर पडा रहा । परन्तु सापु ने कहा “पर इस गदर में की इस सुन्दरी को कहाँ से चुरा लाये हो ?” “तुष्हूं वया” युवक ने क्रोध में फिर यही जवाब दिया । दोनों साधुझी ने परस्पर दृष्टि-विनिमय किया, इसके बाद एक सापु स्वर्ण-दम्म से भरी थंली पुवक पर फेंक कर बेच दो बहू मॉल ! दे युवक कुद्द होकर बैठ गया । उसने तलवार को मूठ पर हाथ धपू क' कहा-- “चया प्राण देना चाहते हो ?” सापु हेंद्र पडा । उसने कहा--'ोह ! यह वात है!” उसने धीरे से प्रपने वस्त्रो से तल्रदार निकाल कर कहा-““यह खिलौना ते हमारे पा भी है, परन्तु तकरार को उरूत नहीं, हम मित्रता किया चाहते हैं वह पैली ययेष्ट नहीं तो पह भौर लो ।” उसने वस्त्र में से बड़े-बड़े एक माला निकाल कर पुषेक पर फेंक दी ! युवक झत्यन्त ऋद्ध होकर बोला--'तुम मवश्य कोई दछप्रवेशी दस्पू हो बाण प्यारे है, तो कहो कौन हो *” “इससे तुम्हें बया, यह कहो, वह सुन्दरी तुम प्राण देकर दोगे या लेकर” “में प्रमी तुम्हारे प्राण सूँगा ।” युदक पैरा ददलकर उठ खड़ा हुआ ' सा ने भी तलवार उठा ली | चदमा के उस लोग प्रकाश में दोतों की. < छनलना उठीं । युवक पत्पवयस्क था, पर कु हो शण में मालूम हो गया कि वहततवार का घनी है । उसने कोठरी के द्वार से पीठ सटा कर झत्रु पर वार करता प्रारम्भ कर दिया, परन्तु हाथु भो साधारण ने था । उयो हो उसे युवक




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