सोमनाथ महालय ऐतिहासिक उपन्यास | Somnath Mahalay Etihasik Upnyas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.13 MB
कुल पष्ठ :
409
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निर्भात्
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उन्होंने उस रूपसी बाला की भलक देख सी । पहले भाँदो हो भाँढो मैं ८०६
मन्त्रणा की, फिर उनमें से एक ने भागेष्ददकर पूछा--
गकहाँ से था रहे हो जवात ?”
पुष्हें वया” युवक इतना कह, मुंह फेरझूर पडा रहा । परन्तु सापु ने
कहा
“पर इस गदर में की इस सुन्दरी को कहाँ से चुरा लाये हो ?”
“तुष्हूं वया” युवक ने क्रोध में फिर यही जवाब दिया ।
दोनों साधुझी ने परस्पर दृष्टि-विनिमय किया, इसके बाद एक सापु
स्वर्ण-दम्म से भरी थंली पुवक पर फेंक कर कट्दा-+
बेच दो बहू मॉल ! दे
युवक कुद्द होकर बैठ गया । उसने तलवार को मूठ पर हाथ धपू क'
कहा-- +
“चया प्राण देना चाहते हो ?”
सापु हेंद्र पडा । उसने कहा--'ोह ! यह वात है!”
उसने धीरे से प्रपने वस्त्र से तल्रदार निकाल कर कहा-““यह खिलौना ते
हमारे पा भी है, परन्तु तकरार को उरूत नहीं, हम मित्रता किया चाहते हैं
वह पैली ययेष्ट नहीं तो पह भौर लो ।” उसने वस्त्र में से बड़े-बड़े भोहियों
एक माला निकाल कर युवक पर सेंक दी !
युवक झत्यन्त ऋद्ध होकर बोला--'तुम मवश्य कोई दछप्रवेशी दस्पू हो
बाण प्यारे है, तो कहो कौन हो *”
“इससे तुम्हें बया, यह कहो, वह सुन्दरी तुम प्राण देकर दोगे या
लेकर”
“में प्रमी तुम्हारे प्राण सूँगा ।” युदक पैरा ददलकर उठ खड़ा हुआ '
सापु ने भी तलवार उठा ली | चदमा के उस लोग प्रकाश में दोतों की... <
छनलना उठीं । युवक पत्पवयस्क था, पर कु हो शण में मालूम हो गया कि
बहततवार का घनी है । उसने कोठरी के द्वार से पीठ सटा कर झत्रु पर वार
करता प्रारम्भ कर दिया, परन्तु हाथु भो साधारण ने था । उयो हो उसे युवक
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