विशुद्धि मार्ग भाग - २ | Bishuddhi Marg Bhag - २
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उन मगधान् अर्द त् सम्क्-सम्बुद्ध को नमस्कार है
[ वरां #
विश्ुदधि मागं
दूसरा भाग
बारहवाँ परिच्छेद
ऋशद्धिविध-निर्देश
अब, जिन छाकिक अशिज्ञाओं के अनुसार “यह समाधि-भावना अभिज्ञा के आनृशंस
बाली है! कहा गया हैं, उन अशिज्ञओं की प्राप्ति के छिये, चूँकि प्रथ्वीकसिण आदि में प्राप्त चतुर्थ
ध्यानवाले योगी को योग करना चाहिये, ऐसे उसे वह समाधि-भावना आनूृशंस-प्राप्त ओर स्थिरतर
होंगी। वह आनृशंस आप, स्थिरतर समाधि-भावचासे समन्नागत (+ युक्त ) सुखपु्रक ही प्रज्ञा-
भावना को पूर्ण कर लेता दे; इसलिये पहले भभिक्ता का वर्णन प्रारम्भ करेंगे ।
भगवान् ने चतुर्थ ध्यानकी समाधिकों भाप्त हुए कुछपुत्रों के लिये समाधि-भाषना के
आनूशंस बतलाने भार जागे-आगे उत्तम-उप्तम घर्मोपदेश करने के लिए--“बह ऐसे एकाग्रचित्त,
परिशुद्ध, स्वच्छ, मलरहित, ग्लेशरष्ित, खदु हुए, कर्म करने के योग्य, स्थिरता-प्राप्त ऋद्धिविध
के छिये चित्त को ले जाता है, छुक्राता है, वह अनेक प्रकार के ऋद्धिविध का अनुभव करता है,
एक भी होकर बहुत होता है ।!?! आदि प्रकार से (१ ) ऋद्धिविध, (२ ) दिव्यश्रोत्र, (३ )
चतोपर्थ ज्ञान, ( ४ ) पू्वनिवासानुस्सति ज्ञान, (५) प्राणियों की च्युति-उत्पत्ति में ज्ञान--इस
प्रकार पॉच लोकिक जभिज्ञायें कही गईं हैं। वहाँ, 'एक भी होकर बहुत होता है! आदि ऋद्धि-
विकृषंण ( = प्राकृतिक वर्ण को त्यागने की क्रिया ) करने की इच्छावाले प्रारम्भिक योगी को
अवदात कसिण तक आरठों कसिणों में आाठ-आठ समापत्तियों को उत्पन्न करके कसिण के अनुलोम
से, कसिण के प्रसिक्षोम से, कसिण के भनुलोम और प्रतिकोम से, ध्यान के अनुछोम से, ध्यान के
प्रतिलोम सर, ध्यान के अनुरोम भौर परतिरोम से, ध्यान को लॉघने (- उत्क्रान्ति ) से, कप्तिण
को लॉघने से, ध्यान जार कसिण को ভাঁঘন से, भज्ञ के व्यवस्थापन से, आलूम्बन के व्यवस्थापन
स--दन चादर अकारे प्ते चित्त का भरी प्रकार दमन करना चहिये ।
कान-सा कम्निण का जनुरोम है 1 *- कौन-घा आरूम्बन का व्यवस्थापन है ? यहाँ भिक्षु
पृथ्वी-कसिण में ध्यान को प्राप्त होता है, उसके पश्चात् आप-कसिण में--ऐसे क्रमशः आाठों कसिर्णो
में सो बार भी, हजार बार भी, समापन्न होता है। यह कसिण का अन्लुछोम है । अवदत-
कस्िण से लेकर बेसे ही प्रतिकोम के क्रम से समापन्न होना कसिण का प्रतिछोम है। प्रष्वी.
कंस्िण से लेकर अवदात कसिण तक, और अबदात कसिण से लेकर पृथ्वी कसिण तक--ऐसे
अनुलोम-प्रतिछोंम के अनुसार बार-बार समापन्न होना कसिण का अनुलोम और प्रतिछोम है!
४. दीष नि० १, २।
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