सम्पदाऐ | Sampdae

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Sampdae  by रामचरण महेंद्र - Ramcharan Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) झंमिंपानी, परनिन्दापरायणं, छोभी, परलिद्रान्वेषी से दर रहने वरद्धि का नाश तथा গান্জাইক্ষ হাজি হীলী ই। स्वच्छ अस्ंतःकरणु में महर्षि पतंजलि की चताई हुईं चास दृत्तियां रदनी द । अर्थात्‌ ऐला व्यक्ति मेत्री, फरुणां, भुद्ता, एवं उपेक्ता-इन चार्र से कार्य लें। हैं।चह ज्ञिस २ को खुखो देखता है, उसके प्रति मित्रता का भाव रखता है। है। किसी को हुंखी देंगे तो श्ररपंनी करुणा का महु मरहमं उसके घाधों पर लगात॑ है यदि पुरयवान्‌ से मित्रता है, तों प्रसन्‍न होता हं ओर यदि किसी दुष्ट या पापी को देखता है तो धद्द उसकी उपेक्ता करता है। इस प्रंकार दुख से चस्त मानव के भति करंणा के ष्यवडार से उलको स्वावेपरा दुर होती है । शुरथघान्‌ को देखकर प्रसन्नं दोने ते गुणा मं दोप देखने की गन्दी आदत नए होतो है और दुए की तरस्थता क्ते क्रोध, र्णा, धृणा श्रादि दोर्षो से श्रन्तःकस्ण स्व॑स्थ वनता है। देवी लम्पदा वाला पुरुष सबको समंसाव से देखंता और प्र म करता है, चंह अपने क्रियात्मक जीवेन मे वास्वचिकवा को स्थान देतां ' है, जला सोचता हें वेसा दी करता है उसके मन, वचन तथा कम तीर्नों का एक रूप द्योता है} तृतीय सम्पदा-ज्लानयोगव्यवस्थिति परमात्मा के स्वरूप को तत्व से जानने के लिएं सच्चिदानन्दघन परमातमा के स्वरूप में, एक्की साव से ध्यान की निरन्तेर गाढ़े स्थिति का ही नाम ' ज्ञानयोग व्यवस्थिति ,, है । सम्पूर्ण इन्द्रियों का कोलाइल शान्‍्त द्वोने पर चेराग्युक्त অপি चिन्त ক अपने इष्टदेव भगवं।न्‌ का आह्वान करन पर च्यानावस्था मे समचान्‌ क दर्शन होते है । ध्यानाचस्था योगे करी उच्चतम स्थिति है जिसमें इप्टदेव के साकार-रूप का




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