अमृता प्रीतम चुने हुए उपन्यास | Amrita Pritam Chune hue Upanyas

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Book Image : अमृता प्रीतम चुने हुए उपन्यास  - Amrita Pritam Chune hue Upanyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नेघी और मंदा इकट्ठा करके घर म घर लिया था । पुरो की मा ने पीले रेशम से कढी हुई लाल फुलकारियी से लकड़ी का सदूक भर लिया था । सियाम से लाये हुए रेशमी जोडा से उस ने दहेजवाला सफेद ट्रक मुह तक भर दिया था । चुनरिया की छोटी वाँवडी चुन चुनकर उस के पारवं दुपने लगे थे। पिछली जोर का भीनरवालां कमरा जहा उस ने पूरी के दहेज के लिए पीतल के इक्यावन वर- तन जाडे थ झमाझम कर रहा था उन दिनों देहातों मे क्रोशिये के काम का बडा चलन था । पूरो मे फ्रोशिये से बनाये हुए फूल जांड-जोडकर पलग की पूरी चादर बनायी थी । दुबूती के तार गिन गिनकर उस ने फूल काढन सीखे थे । अपने हाथ से अपने दहेज के लिए डलिया और मूढे बनाये थे । एक दिन पालक के नरम नरम पत्तो की ताडकर पुरो ने साग काटा । पुरो की मा सुतली की बुनी हुई पीढी पर बैठी अपने लड़के को दूध पिला रही थी। पुरो ने मिटटी की हूंडिया को बान के छोटे-से गुच्छे से अच्छी तरह माजा फिर सांग को पानी से दो बार धोकर भर उस में चने की दाल मिलाकर हूंडिया का मुहुत्तक भर दिया । हारे की मीठी मीठी आय पर टूध पडा कढ रहा था । प्रो ने चूल्हे मे दो चार छिपटिया लगाकर साग चढा टिया। पूरो वा विवाह अब बस विलकुल पास भा गया था । पुरो की मा का प्रतीक्षा थी कि कौन जाने आज या कल प्रो को ससुराल से वोई नाप लेने ही आ जाव । पूरो क्तिनी सुदर सुघड लडवी है रोटी टुकड़ा तो बहू आगन में इघर से उधर चलते फिरते ही कर लेती है। पूरो की सहेलिया कहती थी कि पूरो को जवानी भी तो भरपूर चढी है। पूरा के गोरे निमल मुख पर आख ठहरती न थी 1 पुरी की मा ने एक चाहत भरी न्प्टि से पूरो की जोर देखा शायद वहूं सोचती थी कि प्रो अब ससुराल चली जायेगी पूरी के मायके वा घर भाय-भाय वरेगा । पुरा अपनी मा का दाहिना हाथ थी । मा की आखो मे आसू भर साय । हर बेटी की मा को रोना पडता है । बैठी-बठी पूरो की माँ गाने लगी लावी ते लावी नी क्लेजे दे नाल माएं दस्सी ते दस्सी इक बात नी । बाताँ ते लम्मीया नी धीया क्या जम्मिया नी अज्ज विछोडे वाली रात नी । पूरो की मा का कलेजां भर आया । पूरो चौके के छोटे छोटे काम निवटानी हुई अपनी मा की आवाज़ सुन रही थी 1 पूरो के दिल भ विछाड की एक होल सी उठी । पूरो की मा आगे गाने लगी चरखा जु डाहनीयाँ मैं छाप जु पानीयाँ मैं पिडिया से वाले मेरे खेस नी विज्र / 9




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