तुलसी के अध्ययन की नई दिशाएँ | Tulasii Ke Naye Adhyayan Kii Naii Dishaayen

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Book Image : तुलसी के अध्ययन की नई दिशाएँ  - Tulasii Ke Naye Adhyayan Kii Naii Dishaayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ / तुंलससी के अध्ययन की नई दिशाएँ सबल प्रतिपादन किया है, वह अत्यधिक उपयुक्त एवं तकं-संगत है । तुलसी की भक्ति-पद्धति समन्वित भक्ति-पद्धति है; उसमें विष्णु, शिव, शक्ति, ब्रह्मा दि देवों--- सबको स्थान प्राप्त है। वह भारत के नेत्रों राम एवं कृष्ण में एक मूल आस्था रखती है । उसने चिरन्तन मानवादर्शो के अतुलनीय प्रतीक राम के नाना रूपों की मनोहारिणी ककियाँ दिखाई हैँ । तुलसीदास महान्‌ आश्ञावादी थे, वे मानव- रारीर कौ सुर-दुलंभ समते थे, वे भयावह पतन के युगों में पराशक्ति के अब- तरण में आस्था रखते थे । भारतीय संस्कृति के हतु अत्यधिक भयानक युगोंको उन्होने श्रवण एवं दृष्टि के माध्यमों से गम्भीरतापूवंक सुना-देखा था । फिरमी उनमें कहीं भी निराशा एवं कुष्ठा नहीं दीखती । उन्हे भारतीय संस्कृति की चिर तनता पर अटल विश्वास था उनमें हीनता-ग्रन्थि एवं पराभवमूलक सन्धि-चेष्टा का कोई भी रूप कहीं भी दृष्टिगोच र नहीं होता । सदाचार से शरीर, सत्कम से मन और सद्भक्ति से आत्मा के कल्याण का जो जीवन-दशंन उन्होंने मानव-जाति के समक्ष प्रस्तुत किया था वह चिरंतन मूल्यों से सम्पन्त है, इस तथ्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं । उनके अनेक उद्गार आज अग्राह्य हो सकते हैं और काल- गति को देखते ऐसा स्वाभाविक भी है, कितु उनका সঙ্গি-ভহাল জনা সান্তা एवं प्रेरक ही रहेगा, इसमें संदेह नहीं है। अवधी, ब्रज एवं संस्कृत तीनों में काव्य-रचना करके तुलसीदास ने अपने अतुलनीय भाषा-अधिकार का परिचय दिया था। उनकी नाना-वृत्त-योजना भी अतीव सफल रही है। उनका भक्ति-प्रतिपादन सर्वेश्रेष्ठ था और है। उनका प्रभाव अपार था और है। तुलसीदास का व्यक्तित्व द्विविध महिमा का प्रतीक बन गया है : धर्म-साधना एवं संस्क्ृति-रक्षा में व्यास एवं शंकराचार्य के समकक्ष काव्य-रचना में वाल्मीकि एवं कालिदास के समकक्ष । इधर ढाई हज़ार सालों में भारतीय संस्कृति ओर जीवन पर जिन तीन महापुरुषों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है वे हैं, बुद्ध, शंकराचायं और तुलसीदास । उनमें भी बुद्ध का प्रभाव वेद-विरोध के कारण और शंकराचाये का प्रभाव अतिशय गम्भीर ভাহালিকলা एवं संस्कृत- रचना के कारण उतना अधिक सार्वजनिक नहीं हो पाया जितना सर्वेश्रद्धासंपन्‍्न एवं जनभाषा-कवि तुलसीदास का। भारत की भक्ति-साधना आज समूचे पश्चिम को आक्ृष्ट कर रही है। यदि हम सुपात्र बनकर হাল তব কত্ত के चरित्र एवं चरित्र का व्यापक प्रचार करें तो कल की सुसभ्य एवं उन्‍तत मानवता इन चिरंतन दिव्यादर्शों से प्रेरणा प्राप्त कर कृतार्थ हो सकती है । तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के अतुलनीय एवं सर्वेश्रेष्ठ कवि हैं। रस, अलंकार, छन्द, विभाषाओं के प्रयोग, सन्देश की व्यापकता, धमं की सेवा, संस्कृति कौ व्याल्या, प्रभाव प्रभृति बिन्दुञओं की दृष्टि से हिन्दी का कोई कवि उनकी समता नहीं कर सकता। कबीर की प्रतिभा नकारात्मक थी, उन्हें अपने अति- ¢




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