समीक्षा - शास्त्र | Sameeksha - Shastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. दशरथ ओझा - Dr. Dashrath Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० साहित्य श्रौर समाज
आपके लिए एक ही उपाय है कि आप मुर्दों को फिर जीवित कर दें श्र उन्हें
फिर मारना प्रारम्भ कर दें 1”? इसका प्रभाव हत्यारे नादिरशाह पर इतना गहरा
पड़ा कि उसने सर्ववध की आज्ञा बन्द कर दी और ह॒त्याकांड रुक गया । समाज
सवेनाश्च से बच गया । तलवार को वाणी पे हार खानी पड़ी । समाज की रक्षा
साहित्य ने की ।
निष्कषं यह् निकला कि साहित्य कौ जो शक्ति चिरन्तन सौन्दये से हृदय के
तारोंको स्पदे करके भावो को स्पन्दित करती है, वही सामाजिक ्रादर्शो की
स्थापना करके सामाजिक जीवन का निर्माण करती है। जिस देश का जैसा
साहित्य होगा वेसा ही वहु का समाज बनेगा । साहित्य की प्रेरणा से समाज
प्रेरित होता है । साहित्य समाज की नौका का कंधार है। वही सशक्त होने
पर समाज-नौका को जीवन-सरितामे संचरणशील बनाता है और उसी के श्रशक्त
होने से समाज-तरणी तिरोहित हो जाती है।
भारतीय म्रोर शूरोपीय साहित्य का इतिहास
प्रेमचन्दजी ने एक बार भारतीय भ्रौर यूरोपीय साहित्य की तुलना करते
हए कहा था--“यूरोप करा साहित्य उठा लीजिए । आप वहाँ संघर्ष पायेगे।
कहीं खूनी काण्डों का प्रदर्शन है, कहीं जासूसी कमाल का । जैसे सारी संस्कृति
उनन््मत्त होकर मरु में जल खोज रही है । उस साहित्य का परिणाम यही है कि
वेयक्तिक स्वार्थ-परायणता दिन-दिन बढ़ती जाती है, श्र्थ-लोलुपता की कहीं सीमा
नहीं, नित्य दंगे, नित्य लड़ाइयाँ । प्रत्येक वस्तु स्वार्थ के काँटे पर तौली जा रही
है ।''साहित्य सामाजिक आदर्शों का स्रष्टा है । जब आदर्श ही भ्रष्ट हो गया,
तो समाज के पतन में बहुत दिन नहीं लगते ।” द
साहित्य एक आदर्श स्थापित करता है और समाज उसका अनुसरण । जिस
देश का जैसा साहित्य होता है उसका वेसा समाज बनता है। भारतीय साहित्य
का आदरशों त्याग और तपस्या है, यूरोप का परिग्रह और सुख । भारतीय माया
से मुक्ति में जीवन की सफलता मानता है श्र यूरोप' अधिकार और उसके भोग
में । हमारे आ्रादर्श हैं व्यास और वाल्मीकि, सूर और तुलसी । यूरोप के श्रादर्श
हैं होमर और वर्जिल, शेक्सपियर और मिल्टन ।
समाज का प्रभाव साहित्य पर
यहाँ यह प्रश्न ्रातादहै कि क्या समाज साहित्य. का सदा श्रनुवर्तीं रहता
१.क्सेन साद क्रि दीगर ब तेगरे) नाज कुकी ।
मगर कि निन्दा कुनी खलत्क्र रा व बाज कुशी ॥
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