सगुन पंछी | Sangun Panchhi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sangun Panchhi by लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

Add Infomation AboutLaxminarayan Lal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सोता-मैना में इतना विरोध है; तनाव है, पर लोक-मानस या उसकी सहज चेतना फिर भी उन दोनों की शादी कराके यह दिखाती है कि कुछ भी हो, दोनों को कही मिलना ही है। जिन्दगी सारे मतभेदों, विरोधों के बावजूद चलेगी । प्रकृति और पुरुष अलग-अलग शवितयां हैं पर जहां वे मिल रही हैं, वही सूजन है और यही है सगुन । यही है 'सगुन पंछी', तोता-मैना से आग्रे चलकर, बल्कि स्त्री पुरुप सम्बन्धो, चरित्रों के सागर तट पर पहुंचकर दोनो सगुन पंछी दिखे । इन्होंने अपना ही नाट्य रूप और रंगमंच-प्रकार सुजज कर डाला। वास्तव में ये सगुन हैं । लोक-जीवन में सगुन का भाव है झुभ । निर्गुण वाला सगुण नहीं । पर नही, भूल हो रही है । जो सगुण है वही तो অমুন ই। -+लक्ष्मीनारायण लाल [१५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now