पैरोल पर | Pairol Par

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Pairol Par by वृजेन्द्र नाथ - Vrajendra Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह ,. | | ( म्‌ कमरे मे प रखते ही रस्तोगी ने श्रमिता से कहा- ्रादमी ৯ कुछ सनकी-सा मालूम होता है. अमिता ने श्राश्चये से पति की ओर देखकर कहा--'तभी शायद यहाँ का एक-एक मज़दूर उसके इशारे पर जान देने को तैयार इहै और तभी उसके हाथ में इतनी शक्ति है कि वह जब चाहे तुम्हारी मिलों को खुलवा दे, जब चाहे उन्हें बन्द करवा दे, या जब चाहे उन्हें खण्डहर के रूप में बदल दे. पत्नी की बात का सही उत्तर देते उससे न बना, सो कहा--- भमेरा मतलब दै, उत्तेजित जल्दी होता है. अमिता ने श्रथंपूर्ण दृष्टि से स्वामी की ओर देखा और मुस्करा दी रस्तोगी धीरे-धीरे कहने लगा--समक मं नहीं आता, इस तरह केसे काम चलेगा ! महीना भर हो गया, मिलें बन्द पड़ी हैं, घाटे पर घाटा होता जाता है. जहाँ तक हो सका, शक्ति काम में लाई गई, पर उससे भी कुछ न हुआ--जाने क्‍या होने को है !? इस तरह अधीर होने से थोड़े ही काम चलेगा. महीने भर में जो हज़ारों रुपये का घाठा हुआ है, यदि काम चालू रखने पर लाभ का एक अंश भी मज़दूरों को देते तो वे कितने खुश होते और ञआ्राज यह दिन भी न देखना पड़ता. खीभः कर रस्तोगी ने कहा--'तो क्या हम अपना पेट काट कर उन्हें दे दें और खुद जो हज़ारों रुपये लगाए ब्रेठे हैं सो बेकार जायें १. दोनों का लाभ हो, दोनों सुखी रहें, सो क्‍यों नहीं करते, १६ [ पैरोल पर




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