नारी - जीवन | Nari Jeevan

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Nari Jeevan by रामनाथ सुमन - Shree Ramnath 'suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्नियाँ जो पतियों को खा जाती हैं .............. १७. ही लग गई है | पति की झनुपस्थिति में उसकी दशा बड़ी खरा हो | जाती है इसलिए चाहे जैसी कठिनाई हो सदा पति के साथ जाने का उसका श्राग्रह रहता है । इतना ही नहीं । किसी सभा में भाषण देने जाना होता है तो स्त्री को एक जगह रखकर जाते हैं पर कहीं. किसी मित्र से मँट हो गई और कुछ देर लग गई तो फिर लौटने पर. वह ज्वालामुखी फूटता है कि बेचारे दृक्के-बके हो जाते हैं । इस पर भी वह स्त्री समकती हैं कि इस पुरुष के जीवन पर विजय का रहस्य जानती है । एक बार कहीं बातचीत के सिलसिले में उस स्त्री से मैंने कक दिया कि तुम्हारे कोई लड़की नहीं है यह दुःख की बात है । लड़की जैसे वह बड़ी भयग्रस्त होकर बोली हो-- नहीं मुझे स्वप्न में भी लड़की न चाहिए । आज इनका पति का मेरे ऊपर जो प्रेम है कहीं उससे ज्यादा लड़की पर हो गया तो तब तो मेरा नाश ही समझो । इस बहिन को चार लड़के हैं श्रौर चारों को उसने अपने प्रेम के पे में ऐसा दबोच रखा है कि उनका बिल्कुल विकास नहीं हो रहा है श्रौर न पिता के प्रति उनका कुछ विशेष ममत्व है । पत्नी के प्रेम-पाश में जो पुरुष इस प्रकार फँसे हुए हैं उनको संसार के लिए बेकार ही समसना चाहिए । वे पंयु एवं मरतप्राय से जीवन बिता रहे हैं । प्रत्येक दिन श्र प्रत्येक रात इन्हें अ्रकाल-मृत्यु की शोर ले जारही हैं। पत्नी के जीवन-शोषक प्रेम की जोंक इनके जीवन में लग गई है श्र फाँसी का कार्य धीर-गति से चल रहा है । खत्री ही इनके जीवन का मारक तख्ता है स्त्री द्ीरस्सी है। इनके कान में




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