श्राविका धर्म दर्पण | Shavika Dharm Darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) भेडिया मार धाड़ करते फिरने हैं, श्रन्य भी श्रतेक प्रकार के उपसग होने रहते हैं; परन्तु वह कुछ भी दुख नहीं मानते मल अ्रपते ध्यान से हो डिंगते हैं और न कुछ किसी प्रकार का विकार ही मन में लाते हैं, न नहाते दें न धोते हैं, जंगल की संगें धूल उड़ उड़ कर उनके शरीर पर चिपटती रदती है परन्तु वह न भाड़ते हैं न पॉछते हैं कौर न खाज़ ही खुजाते हैं. कोई उनकी पूजा करें गुण गावे वा मारे पीटे गाली दे बुरा कहै, दोनों को समान समभते हैं, दोनों का ही भला चाहते हैं. ऐसे साधु सच्चे गुरु कहलाते हें और पूज़ने योग्य होने हैं । इनही साधुश्रों में जो साघु संघ के खंघ- पति होते हैं, जिनकी आज्ञा के श्रनुसार ही संघ के सब सोधु चलते हैं, जो किसी प्रकार की ग़लती हो जाने पर साधुवों क' दंड देने हैं श्रौर सच्चे रास्ते फर चलाते हैं वे श्ाचायं कहलाते हैं । साधु संघ में जो श्रधिक बविदान होते हैं श्रौर दूसरे साधुओं को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं । इस प्रकार साघुओं के भी तीन भेद होते हैं। आाचाय उपाध्याय श्रीर बाकी सब साधु । देव वा परमात्मा के दो भेद तद्त शरीर सिद्ध । साधुओं के तीन भेद श्राचायें, उपाध्याय श्र साघु । यद सब पंच परमेष्टी कइलाते हैं। नमस्कार मंत्र में इनददी पांचों को नमस्कार किया जाता है, रामो श्र रिहताणुं अहतां को नमस्कार हो; णमो खिद्धाणं, सिद्धों को नमस्कार हो ; णमो श्राइरियाण, श्राचायों को नमस्कार हो; णमो उवज्कायाणं, उपाध्यायों को, नमस्कार हो; णमो लोपए सब्ब- साइणं, लोक भर के सब साधुयों को नमस्कार दो । यद पंच नमस्द्ार मंत्र है । सच्चे देव अर्थात्‌ श्हंत और सिद्ध सच्य साघु अर्थाद आचाय उपाध्याय श्रौर मुनि, के बनाये छुये सच्चे शास्त्र, इन तोनों का ठीक ठीक श्रद्धान दो जाने से श्रधात्‌ इनपर सच्चा विश्वास लाने से भी सच्चा श्रद्धान




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