आन का मान | Aan Kaa Maan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shree Harikrishn Premee
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सफ़ीयतुचिसा
दुगादास
सफीयतुन्िसा
दुगादास
और कदाचित् तभी से हिन्दुस्तान में दुर्भाग्य के बादल घिर
झाये ।
हाँ, तभी से भारत के भ्राका में दुर्भाग्य |के बादल घिरे ।
हत्याश्रों ओर षड़्यंत्रों का ऐसा चक्र चला जिससे मानवता
चोत्कार कर उठी । मुराद को किसी तरह औरंगजेब ने घोखा
देकर बन्दी बनाया और मोत के धाट उतारा, शुजा का
क्या हुभ्रा यह सब तुम्हें पता है, सारे भारत को पता है।
सबसे करुण-दृश्य तो भारत के हृदय-सम्राट् दाराशिकोह का
अन्त था। जिस दिल्ली में वह बड़ी शान से निकला करते थे
उसी में उन्हें एक मेली-कुचेली छोटी-सी हथिनी पर बैठाया
गया, उनकी बगल में उनका पुत्र सिपरसिकोह था जो उस
समय केवल चोदह वर्ष का था। उनके पीछे नंगी तलवार लिये
बंदीगृह का भयानक अफसर ग्रुलाम नजरबेग बैठा था । संसार
के सबसे बड़े साम्राज्य का उत्तराधिकारी, भारत के जन-मन का
सम्राट् फटे-मैले मोटे कपड़े पहने, काली-कलूटो पगडी सिर
पर रखे, दिल्ली के रास्तों, गली-बाजारों में घुमाया गया ।
वस-बस वीरवर दुर्गादास जी, ओर कुछ न कहिए मेरा
कलेजा फटता है ।
तुम्हारा कलेजा फटता है शाहुजादी, लेकिन उनकी दशा का
अनुमान करो जिन्होंने अपनी आँखों से यह हृश्य देखा है। किस
प्रकार औरंगजेब ने न्याय का ढोंग किया, किस प्रकार काजियों
ने दारारिकोहको प्राणदंड देने का निर्णाय घोषित किया,
किस प्रकार जल्लाद ने उनका सर काटा-तुम्हारा सौभाग्य
है कि तुम्हें यह सब देखने का अवसर नहीं मिला । इस घटना
से सारा भारत आहत हो उठा था। यह करुण-हृश्य तुम्हारे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...