मेरी समर - नीति | Meri Samar Niti

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श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी समर-नीति इन लोरें ने (मुझे दबाने की/ (चेष्टा की । थियासोफिकल सोसायटी के सदस्यों को भेरे व्याख्यान)मुनने की (मनाही |कर दाँ गं क्योकि यदि व प्रर (একলা, सने तो ध्ीसायटी पर से &नकी सारी निष्ठा जाती. रहेगी । इस सोसायटी के गुप्त विभाग (1980969710 ) का यह नियप्र ही हे कि ज़ो मनुष्य उक्त विभाग का सदस्य होता है उसे कृथर्मी ओर म्रोरिया। अथवा उनके प्रत्यक्ष प्रातेनिधि मिस्टर जज ओर श्रीमती বল্ল से ही शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है।॥ अतः उक्त विभाग कि सदस्य हाने का चह अर्थ हे। के ज्नुष्य अपनी कवाधीन चिन्ता (बिलकुल छोड़कर (पूर्ण रूप से इन लोगों के हाथ में ८आत्मसमपैण कर दे । निश्चय ही में ये सब बातें नहीं कर सकता था और जो मनुष्य ऐसा करे उते में हिन्दू कह भ। नहीं सकता । मेर हृदय में নিব जज के लिए बड़ी श्रद्धा है । वह गुणवान, उदार, सरल और थियासोफिष्टों किप के योग्यतम प्रातीनीधे थे | उनमें और श्रीमती बेसेन्ट में जो विरोध हुआ था उसके सम्बन्ध में कुछ भी राय देने का मुझे अधिकार नहीं है, क्याकि दाना ही अपने 'महात्मा' को सत्य कहने का दावा करते हैं । आश्चर्य का विषय तो यह है कि दोनों ही एक ही भ्रहात्माः का दावा करते हैं; ईश्वर जाने सत्य कोन हैं। वही विचार करने वाला है । और जब दोनों पक्ष में प्रमाण की मात्रा बगबर है तब ऐसी अवस्था में किसी भी पक्ष में अपनी राय प्रकट करने का किसी को अधिकार नहीं है । ৬ इस प्रकार समस्त अमेरिका में उन लोगों ने मरे लिए मार्ग बनाया ' इतना ही नहीं, वे (दूसर विराधी पक्ष] ईसाई मिशनग्यि)। से जा पिले ।(इन ईसाई मिशनरियों -नेएसे ऐसे ्यानक झूठ|मेर विरुद्ध द




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