नीतिवाक्यामृतम | Niti Wakya Mritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र भ थे जलमपिलाले पृज्यंपादोउसि तत्व चेंदसिस फकेयमिदार्नी सोमदेबेन लाजिभ # भवेति है बोदी, न ती चू सभस्तदर्चने शादय पर सं कमेक किए भकह- कदेवके तुल्य है, न जैनसिंदधाध्तके फहनेंके लिए हंससिद्धाश्तदेष है और न अयाकरंणमें पूज्यपाद है, फिर इस समय सोभदेवके साथ किस बिरते पर बात करने जला है! , इस उसे स्प्ट है कि सोमदेव्सरि तके और जैनसिद्धान्तेके शमंत्भ व्याके- रणेशास़के भी पंष्टित ত্ী৭ राजणीसिश सोभवेध । सोमदिवके राजनीति होनेका रमाण गह नीतिवांक्याश्त तो है है, इसेफे सिवाय उनके यंशस्तिऊुकर्ें भी जशीधर मदहाराजफा चरिश्रत्विश्रण करते संमेय शंजनीतिकी बहुत ही विशद और विस्तृत च्चों को भई है । पाठकोंकों चाहिए कि वे इसके लिए यशस्तिलकका तृतीय आश्यास अवश्य पढ़ें | यह आइवास रॉजनीतिफे तस्बोंसे भरा हुआ है। इस विषथर्म वह अध्वितीय है। वर्णन करनेकी सैली बढ़ी ही न्दर है । कषित्वकी कमनीयता जौर सर- संतासे राजनीतिकी नीरसता भाष्छम नही कहौ चली गहै है । नीतिवाक्यासतेके अनेक अंशोंका अभिप्राथ उसमें किसी न किसी रूपभे सन्तर्निहितं जन पेता है +} * अकलछंकदेय--अध्सहल्ली, राजवार्तिक आदि प्रन्थोंके राचियता । दँखे- सिद्धान्तदेव--ये कोई सैद्धान्तिक आचार्य जान पढ़ते हैं। इनका अब तक और कहीं कोई उल्लेख देखनेमें नहीं आया। पूज्यपादू--देवनन्दि, जैनेन्द्र- व्याकरणके कर्ता। + नीतिबाक्याखेत जौर यशस्तिलकके कुछ समाना्थेक धचनोंफा मिलान कीजिएः-- १--जुभुक्षाकले भोजनकारुः-- नी° बा° प° २५३। चारायणो निहि तिमिः पुनरस्तकारे, मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते । ञुकि जगाद चष॑से भम चैव स्गै- स्तस्याः स धव समयः श्चुधितो यदैष ॥ २९८१ का आण० ३॥




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