सहित्यि कों से | Sahityiko Se
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ साहित्यिकों से
कि सामाजिक जीवन में उनऊा स्थान डेँचा हे, इसलिए मैने साहिलिफों
को 'देवषि! कहा है ।
सहज प्रेरणा
साहित्य आत्महेतु के ल्ए होता है, परमेश्वर के लिए होता है और
अहेतुक भी होता है। कुछ मिलाकर साहित्यिफों से बोले बगेर, लिखि वगैर
रहा नहीं जाता । उन्हे सहज प्रेरणा होती है, अन्त र्ति होती है, जस
गगा सहज यहती है, सरज सहज प्रकाश देता है । सूरज को भाव नही
होता फ्रि वह प्रकाश दे रहा है । उसी तरह ठेवर्षि स्वाभाविक रुप से
बोलेंगे, रोयेंगे। हेतुपूवक बोलेंगे, तो भी गायेंगे। साहित्यिक्रों का स्थीन
बहुत ही ऊँचा है | “भगवद्गीता” का मतल्य है--भगवान् की गाई हुई
चीज | इसलिए साहित्यिकों का जीवन मे विशेष स्थान हे ।
अज्ञात देवपि
इस जमाने में भी ऐसे देवर्पि हुए है। रवीन्द्रनाथ ठाडुर ठेवषि थे ।
जो बटे होते है, पमिद्ध होते है, वे ही अच्छे और उत्तम साहित्यिक हेते
है, ऐसी वात नही है । वे तो अच्छे है ही, परन्तु उनसे भी वटक वे ले
सकने ह्, जिन्टं लेग जानते नटी । सूरज की सात प्रकार ऊी कि हम
जानते दे, परन्तु जो अल्टरावायोरेट” और 'इफारेड-जैसी फिरणे होती ह,
उन्हें हम ठेख नह स्ते, परन्तु उना राभ मित्ता है । उस्र तट् जा
सुय फिरंणें प्रकट होती है, उनसे भी ये किरणे अयि उपकार होती ट
जो प्रकट नहों होतीं। इसलिए दुनिया को जिनकी पहचान हुई रै वें उतने
महान् नन घे, सतिन मगान् चे ये, जिनी दुनिया को पहचान नहीं हुई |
भगवान् बुद्ध, ईसा आदि महान् व्यक्तियों की गहिमा दुनिया गाती
वे महात् थे, इसमे कोई शक नहां | परन्तु उनके भी कोई गुर थे
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