सहित्यि कों से | Sahityiko Se

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Sahityiko Se by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ साहित्यिकों से कि सामाजिक जीवन में उनऊा स्थान डेँचा हे, इसलिए मैने साहिलिफों को 'देवषि! कहा है । सहज प्रेरणा साहित्य आत्महेतु के ल्ए होता है, परमेश्वर के लिए होता है और अहेतुक भी होता है। कुछ मिलाकर साहित्यिफों से बोले बगेर, लिखि वगैर रहा नहीं जाता । उन्हे सहज प्रेरणा होती है, अन्त र्ति होती है, जस गगा सहज यहती है, सरज सहज प्रकाश देता है । सूरज को भाव नही होता फ्रि वह प्रकाश दे रहा है । उसी तरह ठेवर्षि स्वाभाविक रुप से बोलेंगे, रोयेंगे। हेतुपूवक बोलेंगे, तो भी गायेंगे। साहित्यिक्रों का स्थीन बहुत ही ऊँचा है | “भगवद्‌गीता” का मतल्य है--भगवान्‌ की गाई हुई चीज | इसलिए साहित्यिकों का जीवन मे विशेष स्थान हे । अज्ञात देवपि इस जमाने में भी ऐसे देवर्पि हुए है। रवीन्द्रनाथ ठाडुर ठेवषि थे । जो बटे होते है, पमिद्ध होते है, वे ही अच्छे और उत्तम साहित्यिक हेते है, ऐसी वात नही है । वे तो अच्छे है ही, परन्तु उनसे भी वटक वे ले सकने ह्‌, जिन्टं लेग जानते नटी । सूरज की सात प्रकार ऊी कि हम जानते दे, परन्तु जो अल्टरावायोरेट” और 'इफारेड-जैसी फिरणे होती ह, उन्हें हम ठेख नह स्ते, परन्तु उना राभ मित्ता है । उस्र तट्‌ जा सुय फिरंणें प्रकट होती है, उनसे भी ये किरणे अयि उपकार होती ट जो प्रकट नहों होतीं। इसलिए दुनिया को जिनकी पहचान हुई रै वें उतने महान्‌ नन घे, सतिन मगान्‌ चे ये, जिनी दुनिया को पहचान नहीं हुई | भगवान्‌ बुद्ध, ईसा आदि महान्‌ व्यक्तियों की गहिमा दुनिया गाती वे महात्‌ थे, इसमे कोई शक नहां | परन्तु उनके भी कोई गुर थे




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