आत्मोत्सर्ग | Aatmotsarg
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्द प्रत) ११
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त्य(मशन्व कौ सलि समम कर विश्वाशितने राज-
सिंहासन छीड़ दिया धा। ऐशखय ओर हाथो वेड को छोड़
कर वे संन्यासो बने थे। उन्होंने देखा कि जो नेता बनना
चाहे--जी छूमरों की उपदेश देना चाहे, उसे सबसे पहले
अपने साथ को बलि देने चाहिये--अपने ऐश्ड्य की दूसरोंदों
हिल में लमाझ्र खसे दारिद्या सन्त सिद्ध कश्ना चापिये |
इसलिये अपना राज्य भर राज ख्िंहासन त्थाग्रकर विश्ञासिय
सन्ासौ ये, उनके दारिद्धय-सन्त्त सिद्ध करते समय विश्व
काँप छठा था | संसागर् न मानम कितन् रजा दकम् म्र
मथर, संमार उन्दः नदीं जानता, यदि विश्वानि भौ राजा
ही रहते तो उ्हें कोल पच्चानता * किन्तु राजधि विश्वासित
को संसार जानता है--मज्िि सहित सिर ककाता है
जिस दिन त्यामसन्त सिंद्र था, उस दिन मारत भौ उचत
धा--लिस दिन दरिद्रता थे घुणा न थो तब भारत भो संसार
का नेता था । कन्तु जद स दे धुषा दुद, तभो से मारत
गिरने लगा है। ह मारत-सन्दान | उश उश्रन दिनं क्ये
सामकं न्ये फिर उसो त्ार्सन्त्र कमे सिद्ध कर-- शिर रषौ
दारिद्रखत की पाल्नन कर। संसार को कोई शशि इस बल
के पालने वालों के सामने नहीं टिक सकते । घनवस, ऐेश्वर्य-
बस, जनबल, आदि कोई मो बल हो, किन्तु व्यागवलक सामने
सबको सिर ऋत्नाना प्रढ़ता है। मंगरर काइतिहास त्याग
को कथासात है | जिसने त्याग जोदार किया वष्ठ सद्रत অনা
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