Kabir   by हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

Read More About Hazari Prasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पु हे टृष्टिम देव नहीं है--कवीरदासका अपेक्षाकृत सहज चक्रसस्थान--उसका अर्थ सहज समाधि है--निरजनसंत्रंधी कव्पनाकी जटिलताका कारण-- ऐतिहासिक परम्परा--आदि मगल 1 ७२-७० ६. कुछ अन्य शाव्दोंके भाग्य-विपयेय निरजनके समान अन्य मनोरजक दयब्द--यूत्य--सहज-नाद-ाविंदुा खसस--घरनी--इनका ऐतिहासिक विकास--केंचलावस्था--चार आनंद-- सुखराज या महासुख--रामरस--खसमका सहजयानी अर्थ--योगियोंकी गगनोपमावस्था--घरनी--तीन इत्तियों । ७१-७९ ७. योगपरक रूपक और उलटवॉसियँ थोगियोंका प्रमाव--उनका उल्दा कथन--योगियों और सहजयानियोंकी उल्टवॉतियी--सध्या या सधघा भापा--योगगास्रीय सकेतिक बच्टोका सग्रह--उलयवॉसियॉकी अतिगयोक्ति बैठी--कवीरदासके अपने सकेतिक बव्द--सम्प्रदायम मान्य साकेतिक झब्द--सकेतवाचक गब्दोंमे निगिरणपूर्वक अव्यवसान नहीं है--रूपकका भाव--परम्पराका ऐतिहासिक विकास--सहजयानी सिद्ध उदाहरण--कष्णाचार्वसे उटाहरण--- साधर्म्यकी प्रधानता ही सकेतका कारण है--निरजनविषवक साम्प्रदायिक विचारकी समीक्षा--कवीरदासकी उलटवॉसियोंसें उदाहरण--ऊुछ अनुमान- सापेक्ष सकेत--दो टीकाकारोंकी तुलना--उसका निष्कर्ष--इठवोगी और कवीरमतका पाधेक्य--रामकी महिमा कवीरकी अपनी । ८०-९४ <. रह्म और माया रामानद और उनका मत--क्या वे वििष्रादवैतवादी थे--फर्कुदरके मतकी मत--फर्कु्रके मतका मजबूत अंग--परिणामवाद -आरमवाद--सलार्यवाद--असत्कार्यवाद--रामानदी मतमे अद्वैतबादकी मान्यता--कंवीरने रामानन्दसे क्या चेता--वेढान्तमत क्या है--आत्मविद्या याज्रह्म विद्या--परा और अपरा विद्या--निरगुण और सगुण त्रह्म--आर्वश्रम-- सचिदानंदरूप परत्रह्म और अपरत्रझ--साख्य मतसे सष्टिका विकास-- कर्मफठ--छिग या सक्षम शरीर--साख्य और वेदान्तके मतले कर्मप्रवाह--- 'सचित और क्रियमाण कर्म--माया और अविद्या--माया निरजनकी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now